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अनेकान्त/२४
अतिरिक्त पकाने के लिए अन्य व्यक्ति को अग्नि आदि भी नहीं देना चाहिए।१७ गृहस्थी के लिए कभी-कभी आग, मूसल, ओखली आदि की अन्य गृहस्थी से लेने की आवश्यकता पड़ती है। एक गृहस्थ होने के कारण पं. आशाधर जी को इस व्यावहारिक कठिनाई का पता था। संभवत: इसी कारण उन्होंने गृहस्थी को परस्पर में अग्नि आदि के लेन-देन की छूट दी है, परन्तु जिनसे हमारा व्यवहार न हो तथा जो अजान हों ऐसे लोगों को आग वगैरह भी नहीं देना चाहिए। हो सकता है वह इस अग्नि आदि का प्रयोग गांव, गृह आदि के जलाने में कर दे। अनेक बार ऐसी घटनायें सुनी और देखी भी गई हैं।
यहाँ यह विशेष ज्ञातव्य है कि प्राय: सभी श्रावकाचारों में जहाँ हिंसा के उपकरणों को देना हिंसादान अनर्थदण्ड कहा गया है, वहां कार्तिकेयानुप्रेक्षा में बिलाव आदि हिंसक पशुओं के पालन को भी इस अनर्थदण्ड में सम्मिलित किया गया है।१८
३. अपध्यान : आर्त्त, रौद्र खोटे ध्यान की अपध्यान संज्ञा है। पीडा या कष्ट के समय आर्तध्यान तथा बैरिघात आदि के विचार के समय रौद्र ध्यान होता है। ये दोनों ध्यान कभी नहीं करना चाहिए। यदि प्रसंगवश इनका ध्यान हो जाये तो तत्काल दूर करने का प्रयास करना चाहिए। वास्तव में दूसरों का बुरा विचारना कि अमुक की हार हो जाये, अमुक को जेल हो जाये, अमुक व्यक्ति या उसका परिवारी जन मर जावे आदि रूप खोटा विचार अपध्यान नामक अनर्थदण्ड कहलाता है।
___ समन्तभद्राचार्य के अनुसार राग से अथवा द्वेष से अन्य की स्त्री आदि के नाश होने, कैद होने, कट जाने आदि के चिन्तन करने को अपध्यान नामक अनर्थदण्ड माना गया है।१९ सर्वार्थसिद्धि में आचार्य पूज्यपाद ने भी कहा है-'परेषां जयपराजयवधबन्धनांगच्छेदपरस्वहरणादि कथं स्यादिति मनसा चिन्तनमपध्यानम् ।' अर्थात् दूसरो की हार-जीत,