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53/3 अनेकान्त/28
आचार्य मानतुंग बाल-मनोविज्ञान से पूर्णतया परिचित हैं। इसी कारण वे विशेष बुद्धि के बिना अपने द्वारा की जा रही भगवान की स्तुति को वैसा प्रयास कहते हैं, जैसा कि किसी भोले-भाले बालक द्वारा पानी में प्रतिबिम्बित चन्द्रमा को पकड़ने का प्रयास हो।" उन्हें उन मनःसंवेगों की जानकारी है, जिनके कारण व्यक्ति दुष्कर कार्य को भी करने में प्रवृत्त हो जाता है। ऐसे मनःसंवेगों में रचनाधर्मिता (Feeling of Construction) प्रमुख है। जिनवर के अवर्णनीय गुणों का वर्णन करना यद्यपि रचयिता के लिए उसी प्रकार दुष्कर प्रतीत हो रहा है, जैसे कोई व्यक्ति भुजाओं से भयानक समुद्र को पार करना चाह रहा हो, परन्तु वे श्रद्धाभाव से स्तोत्र की रचना में प्रवृत्त हो जाते हैं। वे अपनी प्रवृत्ति को उसी प्रकार मानते हैं जैसे कोई हरिणी अपने बच्चे को सिंह के चंगुल से छुड़ाने के लिए उसका सामना कर रही हो।" उनके स्तवन में प्रमुख निमित्त भक्ति है। वे निमित्त को अकिञ्चित्कर नहीं मानते हैं, अपितु निमित्त की प्रेरक-सामर्थ्य उन्हें स्वीकार्य है। तभी तो कह उठते हैं कि वसन्त ऋतु में अबोध कोयल जैसे आम्रमंजरी का निमित्त पाकर मधुर कूकने लगती है, उसी प्रकार अल्पज्ञ एवं विद्वानों की हँसी का पात्र मुझे भी आपकी स्तुति करने के लिए आपकी भक्ति बलात् वाचाल बना रही है। आचार्य मानतुंग की दृष्टि में स्तुति/भक्ति का फल आराध्य के समान बन जाना है। वे स्पष्ट लिखते हैं कि हे भुवनभूषण! हे भूतनाथ! संसार में यदि सच्चे गुणों से आपकी स्तुति करने वाले भक्त लोग आपके समान बन जाते हैं तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है। जो आश्रयदाता आश्रित व्यक्ति को अपने समान नहीं बना लेते, उस आश्रयदाता से क्या लाभ है?"
आराधक को आराध्य के समक्ष सभी उपमान हीन प्रतीत होते हैं। आचार्य मानतुंग भी जिनेन्द्र देव का वर्णन करते हुए उनके मुख की प्रभा के समक्ष चन्द्रमा की हीनता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि चन्द्रमा की प्रभा दिन में फीकी पड़ जाती है तथा वह कलंकयुक्त है जबकि आपके मुख की कान्ति कभी फीकी नहीं पड़ती है तथा वह निष्कलंक है। दीपक की वर्ति (बाती) से धुआँ निकलता है और वह तेल की सहायता से प्रकाश करता है, हवा के झोंकों से बुझ जाता है, जबकि आपकी वर्ति (मार्गसरणि) निघूम (पापरहित) है, तथा आप प्रलयकाल की हवा से भी विकार को प्राप्त नहीं होते हो। दीपक थोड़े से स्थान को प्रकाशित करता है, जबकि आप तीनों लोकों को प्रकाशित करते हो। आप सूर्य से भी