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53/3 अनेकान्त/58 दक्षिण प्रदेशों के अतिरिक्त अन्य देशों में नहीं हुआ था, अन्यथा वे चोटियों में फूलमाला पर जोर नही देते। 18-153 ___उबटन-अभी यह कहा जा चुका है कि हल्दी के उबटन का प्रयोग नित्य प्रति और विवाह आदि अवसरों पर किया जाता था। उस समय लक्स नहीं मिलता था। 26-17
विवाह और उसकी विधिमामा की लड़की से विवाह होता था। दक्षिण भारत में आज भी होता है।
विवाह के अवसर पर कन्या को पटिए पर बैठाकर, उबटन लगाकर, स्नान कराने के बाद विवाह-मंडप में ले जाया जाता था। देवदर्शन कराने की भी प्रथा थी। मंगल-गीतों के साथ कन्या को मंडप में लाते थे। 44-255-264
सती प्रथा थी, ऐसा लगता है। युद्ध में मारे गए सैनिकों के साथ ही अनेक स्त्रियाँ अपने प्राण दे दिया करती थीं। 44-297
भक्ति रोती आई जिनसेनाचार्य ने वैदिकों से मिलते-जुलते जो कथन किए हैं, उनकी पृष्ठभूमि समझ लेनी चाहिए। श्रीमद्भागवत में एक श्लोक निम्न प्रकार आया हैउत्पन्ना द्रविड़े साहं वृद्धि कर्णाटके गता।
क्वचित्क्वचिन्महाराष्ट्र गुर्जरे जीर्णता गता।। तत्र घोरकलेर्योगात्पाखण्डैः खण्डितांग्का।
दुर्बलाहं चिरं याता पुत्राभ्यां सह मन्दताम् ।। भक्ति नारदजी के पास रोती हुई आई और कहने लगी कि मेरा जन्म द्रविड़ देश में हुआ था। स्मरण रहे, जैनों और बौद्धों का प्रभाव तमिलनाडु में कम करने के उद्देश्य से शिव-भक्ति आंदोलन शुरू हुआ था। वह कर्नाटक में वृद्धि को प्राप्त हुआ। महाराष्ट्र और गुजरात में कमजोर हो गया। घोर कलियुग: के पाखण्डियों के कारण मैं खंडित हो गई हूँ। अपने पुत्रों-ज्ञान और वैराग्य सहित मंद हो गई हूँ। अभिप्राय यह है कि जैन-धर्म के प्रमुख लक्षण ज्ञान और वैराग्य तो अब बूढ़े या शक्तिहीन हो चुके हैं और भक्ति-आंदोलन को भी पाखण्डियों से खतरा है, इसलिए नारदजी उपाय बताइये। नारदजी ने उससे कहा कि हरि या विष्णु की भक्ति से सब कुछ ठीक हो जाएगा।