________________
53/3 अनेकान्त/56 अधिक जान पड़ता है। जहाँ भी अवसर हुआ, वहाँ उन्होंने धान की खेती का ही विस्तापूर्वक वर्णन किया है। यदि प्रस्तुत लेखक भूल नहीं करे तो आचार्य ने अन्य प्रकार की फसलों का जिक्र नहीं किया है। उन्होनें इतना विपुल साहित्य रचा है कि सभवतः उन्हें अन्य प्रदेशों में भ्रमण का अवसर नहीं मिला। वे सिंधु प्रदेश में घोड़ों से, केरल, चोल आदि देशों में हाथियों से परिचित हैं किंतु गेहूँ बाजरा आदि का उल्लेख शायद उन्होंने नहीं किया, हालांकि वे कुरुजांगल प्रदेश का उल्लेख करते हैं। अस्तु।
चावलों की खेती का जिनसेनाचार्य ने बड़ा सजीव वर्णन किया है। धान के खेतों में स्त्रियाँ हाथ में हँसिया लेकर काम करती दिखाई देती हैं। उनके माथे से पसीने की बूंदें टपक रही हैं।
हल्दी का उबटन-भरत ने जब दिग्विजय के लिए प्रस्थान का निश्चय किया, तब पके चावलों की खेती ऐसी शोभित हो रही थी जैसे पति के आगमन का समय हो जाने पर कोई स्त्री हल्दी का उबटन लगाकर बैठी हो। इस प्रकार के उबटन का आदिपुराण में अनेक प्रसंगों पर उल्लेख है। 26-17
आमोद-प्रमोद-मनोरंजन के साधनों का कुछ परिचय भी हमें आदिपुराण में उपलब्ध होता है। भगवान आदिनाथ का जन्म हुआ है और इन्द्र भावविभोर होकर नृत्य कर रहा है। उसकी भुजाओं पर देवियाँ नृत्य करती हुई ऐसी लग रही थीं जैसे लकड़ी की कटपतलियों का नाच ही हो रहा हो। 14-150
इसी प्रकार इन्द्र नृत्यांगना देवियां को ऐसा घुमाता था कि वे ऐसी मालूम हाती थीं जैसे कोई यंत्र की पटरियों पर लकड़ी की पुतलियों को घुमा रहा हो। 14-151
इन्द्रजाल-बाजीगरी-नृत्य करता इन्द्र अनेक प्रकार के करतब दिखाता था। कभी वह दवियों को गायब कर देता था तो कभी आकाश में नृत्य करते हुए प्रदर्शित करता था। 14-151
दाण्डिया-नृत्य-भगवान बालकों को दाण्डि क्रीड़ा में नचाते थे। 141-200
झूला-- मांगलिक अवसरों पर स्त्रियाँ गीत गाते हुए झूमती हुई झूलों का आनंद लती थी। 36-223
स्पष्ट है कि आमोद-प्रमोद के ये साधन महाकवि के समय में प्रचलित मनोरंजन के साधन थे।
मंत्रों, बीजाक्षरों में विश्वास-लोग पिशाच आदि की बाधा से मुक्ति के