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53/3 अनेकान्त/55 है, उसे चंदनक्कूडम कहते हैं। उसमें लोग सिर पर इसी प्रकार से सुगंधित चंदन की खुशबू बिखेरते चलते हैं। केरल में अनेक जैन मंदिर, मस्जिद के रूप में परिवर्तित किए गए हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखना उचित होगा। संभव है कर्नाटक में भी किसी समय यह प्रथा रही हो। 33-43
_वर्षवृद्धि महोत्सव BIRTHDAY इस उत्सव के नाम पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जन्मदिन नहीं, वर्षवृद्धि, जो कि बढ़ती जा रही आयु का स्मरण कराती है। इस अवसर पर राजा मंत्रियों, सेनापतियों के साथ ही साथ श्रेष्ठियों को भी आमंत्रित करता था। 5-1
वंदनवार-भरत ने अपने महल में, गोपुरों में बंदनवार लगवाई थी। उसमें 24 घंटियाँ लगाई गई थीं। वे चौबीस तीर्थकरों की प्रतीक थीं। आते-जाते भरत उन्हें प्रणाम करते थे। आचार्य जिनसेन का कथन है कि उसी समय से अपने घरों के दरवाजों पर बंदनवार लगाने की प्रथा चली है। 41-87-96
__ताम्बूल या पान-अपने काव्यरत्न में आचार्य जिनसेन दक्षिण के लोगों को विशेष रूप से प्रिय पान को नहीं भूलते हैं। उनका कथन है -
ताम्बूलमिव संयोगादिदं रागविवर्धनम् । अन्धकारमिवोत्सर्पत्सन्मार्गस्य निरोधनम्।। 5-129
जिस प्रकार पान चूना, सुपारी आदि का संयोग पाकर लालिमा को बढ़ाता है, उसी प्रकार ये विषय भी स्त्री-पुत्रादि का संयोग पाकर राग को बढ़ाते हैं और अंधकार के समान सच्चे मार्ग में बाधा उत्पन्न करते हैं।
विजयनगर की राजधानी आजकल हम्पी कहलाती है। वहाँ की एक सड़क प्राचीन काल की तरह पान-सुपारी बाजार कहलाता है, किंतु अब वहाँ पान नहीं मिलते। कुछ लोग वहाँ रहते हैं।
मुनि क्षत्रिय हैं-जिनसेनाचार्य ने मुनियों का भी दर्जा बढ़ा दिया है। उनका मत है कि ऋषभदेव ने सबसे पहले क्षत्रिय वर्ण की स्थापना की थी। वे स्वयं भी क्षत्रिय थे। मुनि ऋषभदेव के वंश में उत्पन्न हुए हैं, क्योंकि उनका जन्म भी आदिनाथ द्वारा प्रवर्तित रत्नत्रय के अधीन हुआ है। जन्म दो प्रकार का है एक तो माता के गर्भ से, दूसरा संस्कारों से या दीक्षा के समय होना माना जाता है। इसीलिए सुरेंद्र विद्यानंद कहलाने लगते हैं। 42-28
चावलों की खेती-आचार्य का गहन परिचय चावलों की खेती से ही