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वीर सेवा मंदिर का त्रैमासिक
अनेकान्त प्रवर्तक : आ. जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर
वर्ष-५३ किरण-४ अक्टूबर-दिसम्बर २०००
अपनी सुधि भूल आप,
आप दुख उपायौ अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ। ज्यों शुक नभचाल विसरि, नलिनी लटकायौ ।।१।।
सम्पादक: डॉ. जयकुमार जैन
परामर्शदाता . पं. पद्मचन्द्र शास्त्री
चेतन अविरुद्ध शुद्ध, दरशबोधमय विशुद्ध । तजि जड़-रस-फरस-रूप, पुद्गल अपनायौ ।।२।।
संस्था की आजीवन सदस्यता
११००/वार्षिक शुल्क
१५/इस अंक का मूल्य
इन्द्रिय सुख-दुखमें नित्त, पाग राग रुख में वित्त । दायक भवविपति वृन्द, बन्धकों बढ़ायौ ।।३।।
चाह-दाह दाहै, त्यागौ न ताह चाहै। समता-सुधा न गाहै जिन, निकट जो बतायो।।४।।
सदस्यों व मंदिरों के लिए
नि.शुल्क
मानुष सुकुल पाय, जिनवरशासन लहाय । "दौल' निज स्वभाव भज, अनादि जो न ध्यायौ ।।५।।
प्रकाशक : भारतभूषण जैन, एडवोकेट
मुद्रक : मास्टर प्रिंटर्स-११००३२
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- कविवर दौलतराम
वीर सेवा मंदिर २१, दरियागंज, नई दिल्ली-११०००२, दूरभाष : ३२५०५२२ संस्था को दी गई सहायता राशि पर धारा ८०-जी के अंतर्गत आयकर में छूट
(रजि. आर १०५९१/६२)