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58/3 अनेकान्त / 30
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि श्रीमानतुंगाचार्यकृत भक्तामर स्तोत्र भक्तों के लिए मनोविज्ञान की भूमिका पर आश्रित एक प्रभावक स्तोत्र - काव्य है । यह सहसा ही पाठकों के हृदय को आन्दोलित करने में समर्थ है।
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'श्रीपतिर्भगवान्पुष्याद भक्तानां वः समीहितम् ।
यद्भक्तिः शुल्कतामेति मुक्तिकन्याकरग्रहे । । क्षत्रचूड़ामणि 1 / 1. गुरुभक्ति सती मुक्त्यै क्षुद्र कि वा न साधयेत् । त्रिलोकीमूल्यरत्नेन दुर्लभः कि तुषोत्करः ।।' वही, 2 '
आत्मानुशासन (शुभचन्द्राचार्य),
क्षत्रचूड़ामणि 2 / ( आशाब्धिरिव नैराश्यादहो पुण्यस्य वैभवम् )
Inherited or innate Psycho-physical disposition which determines its possessor to perceive and to pay attention to object of a certain class to experience an emotional excitement of particular quality upon perceiving such an object and to action in regard to it in a particular manner or at least to experience an impulse to such action performed perfectly at the first attempt.
-MC Daugall
दशरूपक, 4/
मोहबीजाद्रतिषौ बीजान्मूलांकुराविव ।
तस्माज्ज्ञानाग्निना दाह्यं एदेतौ निर्दिधिक्षुणा ।।' आत्मानुशासन, 182. रागो य दोसो वियं कम्मवीयं कम्मं च मोहप्पभवं वयंति । कम्मं च जाईमरणस्स मूलं दुक्खं च जाईमरणं वयंति ।
- उत्तराध्ययनसूत्र, 327
See - A Layman's Guide to Psycherity and Phycho-Analysis.
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Eric Berne
and Outlines of Psychology-sulley योगसूत्र, 2/33.
- रीडर संस्कृत विभाग एस. डी. कॉलेज, मुजफ्फरनगर
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10. त्वत्संस्तवेन भवसन्ततिसन्निबद्धं
पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्तलोकमलिनीलमशेषमाशु
सूर्याशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् । । - भक्तामर स्तोत्र, 7.
11. वही, 48
12. भक्तामर स्तोत्र, 38-46
13. वही, 47.
14. वही, 15.