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अनेकान्त/53-2 %%%% %%%%%%% %%%%%%% %% %
श्री भगवान महावीर का वन्दन-20 मोक्ष गए सम्मेद शिखर पर काल-दोष से बीस जिनेश। कुन्द कुन्द स्वामी करते हैं बीसों को ही नमन विशेष ।। महावीर तीर्थंकर का है मुक्ति धाम पावा सरवर ।
कर उनका गुणगान, चढ़ाऊँ अर्घ्य उन्हीं का सुमरन कर ॥ ओं ह्रीं पावापुरी पद्म सरोवर से श्री महावीर जिनेन्द्रादि छब्बीस मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभास कूट-21 'प्रभास' कूट पे सिद्ध पद पाया 'सुपार्श्वनाथ' तीर्थकर ने। इन्द्र-देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने । इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर।
पद-चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ॥ ओं ही प्रभास कूट से श्री सुपार्श्वनाथ जिनेन्द्रादि उन्नचास कोड़ा कोड़ी चौरासी करोड़ बहत्तर लाख सात हजार सात सौ बियालीस मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
सुवीर कूट (सकुल कूट)-2n 'सुवीर' कूट पे सिद्ध पद पाया 'विमलनाथ' तीर्थंकर ने। इन्द्र-देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने ।। इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर।
पद-चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ॥ ओं ह्रीं सुवीर कूट से श्री विमलनाथ जिनेन्द्रादि सत्तर कोड़ा कोड़ी साठ लाख छः हजार सात सौ बियालीस मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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