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। : ननकान्त/16 पकार का जड़ वस्तु की, जिनेन्द्र भगवान की तरह पूजन कर सकता है ? कभी
नहा।
चर्चा नं. 9 – चारित्र चक्रवर्ती आ. शांतिसागर जी महाराज के सघ में झलक तथा क्षल्लिकाओं की नवधा-भक्ति की क्या परंपरा थी? समाधान – चारित्र चक्रवर्ती पूज्य आ. शांतिसागर जी महाराज क संघ मे व भा भी क्षुल्लक आदि को अर्घ्य चढ़ाने की परम्परा नहीं थी। उन्होंने अपने
ल-लक अवस्था में कभी अर्घ्य नहीं चढ़वाये। इसके समाधान में कृपया अजितमति-साधना-स्मृति ग्रन्थ (लेखिका ब्र. रेवती दोसी) के पृष्ठ 33 पर प्रकाशित आचार्य शांति सागर जी से दीक्षित सबसे अन्तिम क्षुल्लिका अजितमति जी के साथ प. प्रवीण चन्द्र के किये गये प्रश्नोत्तरों को देखने का कष्ट करें। (क्षुल्लिका माताजी की समाधि सन् 1991 में हो चुकी है)।
पंडितजी - रजस्वला अवस्था में आर्यिका या क्षुल्लिकाओं को पीछी लेने कं निय आचार्य महाराज की अनुमति थी या नहीं?
अम्माजी – नहीं! हम लोग उस अवस्था में मृदु वस्त्र इस्तेमाल करते थे। (देख जैन-गजट दि. 7-3-1991 - अंतिम पृष्ठ पर छपा है “आचार्य श्री के संघ में (अर्थात् चा. चक्रवर्ती प. आचार्य शांतिसागर जी महाराज के संघ में) क्षुल्लिकायें, आर्यिकायें, अशुचि अवस्था में पीछियाँ ग्रहण नहीं करती थीं")।
पं. जी का प्रश्न - क्षुल्लिका/क्षुल्लक को पड़गाहन कर लेने के बाद चौके में उनके पॉव धोने की परम्परा आपके संघ में है या नहीं?
अम्माजी का समाधान – नहीं, क्षुल्लिकाओं के धातुओं के कमण्डलु में पानी नहीं रहता, उनके पाँव उन्हें चौके में ले जाने के पहले धोने चाहियें। क्षुल्लक के बारे में तो सवाल ही नहीं उठता। उनके लकड़ी के कमण्डलु में श्रावकों के द्वारा दिया गया सोले का जल होता है। वे स्वयं चौके के बाहर अपने पाँव धोते हैं।
इस प्रश्नोत्तर से यह स्पष्ट होता है कि चारित्र चक्रवर्ती पूज्य आ. शांतिसागर जी महाराज के संघ में क्षुल्लकों आदि के पाद-प्रक्षालन आदि की परम्परा नहीं थी। वे क्षुल्लक के पाद प्रक्षालन को आवश्यक नहीं मानते थे। क्षुल्लक गणेशप्रसाद वर्णी ने भी कभी अपना पाद-प्रक्षालन आदि नहीं कराया। वर्णी मनोहर लाल जी भी कभी अपना पाद-प्रक्षालन नहीं कराते थे।