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- 53/3 अनेकान्त/19 उपर्युक्त सभी बिन्दुओं का सारांश यही है कि आर्यिकाओं की नवधा-भक्ति न तो मूलगुरुपरंपरा है और न आगम-सम्मत ही है। उपरोक्त लेख के द्वारा पूज्य आर्यिकाओं की विनय या सम्मान में कोई कमी करने का आशय रन्च मात्र भी नहीं है। यह सत्य है कि श्राविकाओं से आर्यिकायें महान हैं। मैं स्वयं बहुत से आर्यिका संघों में जाता हूँ और भक्तिभाव से उनका दर्शन व विनय करता हूँ। यह भी आशय नहीं है कि आर्यिकाओं व श्राविकाओं में कोई अन्तर न माना जाये। कहना मात्र इतना है कि पूज्य आर्यिकायें, मुनितुल्य संयमी या मुनिवत् पूजा के योग्य नहीं हैं।
जिस प्रकार आर्यिकाओं की नवधा-भक्ति आगम-सम्मत सिद्ध नहीं होती, उसी प्रकार सज्जातित्व की वर्तमान परिभाषा भी आगम-उल्लिखित नहीं है। क्षेत्रपाल-पद्मावती की पूजा भी आगम-सम्मत नहीं है। अतः नम्र निवेदन यही है कि इन सब परम्पराओं को छोड़कर आगम-परम्पराओं को अपना लिया जाये और यदि ऐसा करने का साहस न कर सकें तो कम से कम आगम के अनुसार चलने वालों पर आक्षेप करना तो बंद होना चाहिये। हमें तो आगम ही शरण है।
-1/205, प्रोफेसर्स कालोनी
हरीपर्वत-आगरा-282002
यशपाल जैन का निधन
नागदा-10 अक्टूबर 2000 गांधीवादी विचारधारा के पोषक लोकप्रिय साहित्यकार श्री यशपाल जैन के निधन से देश के साहित्यिक जगत की अपार क्षति हुई है। श्री जैन उपन्यास, कहानी, निबन्ध, संस्मरण, यात्रावृत्तान्त, नाटक, कविता आदि सभी विधाओं में निष्णात थे। सम्प्रति सस्ता साहित्य मण्डल द्वारा प्रकाशित “जीवन साहित्य" लोकप्रिय पत्रिका के सम्पादक भी थे। वीर सेवा मंदिर से उनका आत्मीय भाव था। यह संस्था दिवंगत आत्मा की सद्गति के लिए कामना करती है।
सुभाष जैन महासचिव, वीर सेवा मंदिर
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