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जहजायरूवसरिसा अवलंबियभुअ णिराउहा संता । परकियणिलयणिवासा पव्वज्जा एरिसा भणिया ।। 51।। (बोध पाहुड़) गाथार्थ जो तत्काल उत्पन्न हुए बालक के समान नग्न रूप से सहित है, जिसमें भुजाएँ नीचे की ओर लटकी रहती हैं, जो शस्त्र से रहित हैं अथवा प्रासुक प्रदेशों पर जिसमें गमन किया जाता है, जो शान्त है तथा दूसरे के द्वारा बनाये हुए उपाश्रय में जिसमें निवास किया जाता है, वह जिन-दीक्षा कही गई है। चर्चा यदि स्त्रियों में दीक्षा नहीं होती है तो उन्हें पंच महाव्रत क्यों दिये जाते
हैं
समाधान यह सत्य है, किन्तु सज्जाति (स्त्री पर्याय के व्रतों की उत्कृष्टता) को बतलाने के लिए महाव्रतों का उपचार होता है, यथार्थ में महाव्रत न होने पर भी उनकी स्थापना की जाती है ।
जइ दंसणेण सुद्धा उत्ता मग्गेण सा वि संजुत्ता ।
घोरं चरिय चरितं इत्थीसु ण पव्वया भणिया ।। 25।। (सूत्रपाहुड़) यदि स्त्री सम्यग्दर्शन से शुद्ध है तो वह भी मार्ग से युक्त कही गई है । फिर भी कठिन चरित्र का आचरण करते हुये भी स्त्रियों के प्रव्रज्या (दीक्षा)
अर्थ
नहीं कही गई है।
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देशप्रतान्वितैस्तासा मारोप्यन्ते बुधैस्ततः ।
अर्थ
महाव्रतानि सज्जातिज्ञप्त्यर्थमुपचारतः ।। 89 ।। ( आचार-सार) इसलिये बुद्धिमानों के द्वारा उन आर्यिकाओं के सज्जाति के ज्ञप्ति के लिये उपचार -से देशव्रतों से युक्त, महाव्रत आरोपण किये जाते हैं ।
कर्मकाण्ड गाथा 787 में पंचम गुणस्थानवर्ती के (भले ही वह आर्यिका, क्षुल्लक आदि हो ) बंध के तीन प्रत्यय बताये हैं। गाथा इस प्रकार है :चदुपच्चइगो बंधो पढ़मे णंतरतिगे तिपच्चइगो ।
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मिस्सगबिदियं उवरिमदुगं च देसेक्कदेसम्मि ।। 787 ।।
मिथ्यादृष्टि के 4 प्रत्ययों से बंध होता है, उसके बाद सासादन आदि तीन गुणस्थानों में मिथ्यात्व के बिना 3 प्रत्ययों से ही बंध है, किन्तु एक देश असंयम के त्यागने वाले देश संयम गुणस्थान में दूसरा अविरत प्रत्यय विरत कर मिला हुआ है तथा आगे दो प्रत्यय पूर्ण ही हैं । इस प्रकार पाँचवे गुणस्थान में तीनों ( अविरति, कषाय, योग) कारणों से बंध होता है ।