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53/3 अनेकान्त/5 अर्थ – वस्त्र सहित होने से उनके संयतासंयतगुणस्थान होता है। अतएव उनके संयम की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। शंका - वस्त्र सहित होते हुये भी उन द्रव्यस्त्रियों के भाव-संयम के होने में कोई विरोध नहीं हैं . समाधान - उनके भाव-संयम नहीं हैं, क्योंकि अन्यथा, अर्थात् भाव संयम के मानने पर, उनके भाव-असंयम का अविनाभावी-वस्त्रादिक का ग्रहण करना नहीं बन सकता है। ई. सर्वार्थसिद्धि में आचार्य पूज्यपाद अध्याय-9 सूत्र-1 की टीका में लिखते
असंयमस्त्रिविधः । अनन्तानुबन्ध्य प्रत्याख्यान-प्रत्याख्यानोदय विकल्पात्। अर्थ – असंयम के तीन भेद हैं - अनंतानुबंधी का उदय, अप्रत्याख्यानावरण का उदय और प्रत्याख्यानावरण का उदय। आर्यिकाओं व क्षुल्लकों के पंचम गुणस्थान होता है, उनके प्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय सतत रहता है। अतः उनको असंयमी कहा जाता है। उ. प्रवचनसार' में आचार्य कुन्दकुन्द अधिकार-3 गाथा 224-7 में इस प्रकार कहते हैं :
लिंग हि य इत्थीणं थणंतरे णाहिकखपदेसेसु ।
__भणिदो सुहमुप्पादो तासिं, कह संजमो होदि।। 224-7।। अर्थ - स्त्रियों के लिंग अर्थात् योनिस्थान में, स्तनों के नीचे, नाभि-प्रदेश तथा काँख-प्रदेश में सूक्ष्मजीवों की उत्पत्ति कही गयी है, इस कारण से उनके संयम कैसे हो सकता है। चर्चा नं. 3 - स्त्रियों में दीक्षा कही है या नहीं? समाधान - आचार्य कुन्दकुन्द सूत्र पाहुड़ में लिखते हैं :
लिंगम्मि य इत्थीणं थणंतरे णाहिकक्खदेसेसु।
भणिओ सुहमो काओ तासं कह होइ पव्वज्जा।। 24।। अर्थ – स्त्रियों की योनि में, स्तनों के बीच में, नाभि और काँख में सूक्ष्म शरीर के धारक जीव कहे गये हैं, अतः उनके प्रवज्या (दीक्षा) कैसे हो सकती
आचार्य कुन्दकुन्द ने प्रव्रज्या का लक्षण इस प्रकार दिया है :