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53/3 अनेकान्त/10 तुल्य कहा है, तो क्या सभी प्रतिमाधारकों की मुनि की तरह नवधा-भक्ति की जाये? कदापि नहीं।
__ आर्यिकाओं के लिये प्रवचनसार-गाथा 224 के उपरान्त 9 गाथाओं में यह स्पष्ट है कि ये मुनितुल्य क्यों नहीं हैं? ये प्रमाद से भरी हुई होती हैं, इनके चित्त में निश्चय से मोह, द्वेष, भय, ग्लानि तथा चित्त में माया होती है, कोई भी स्त्री निर्दोष नहीं पायी जाती, उनके चित्त में काम का उद्रेक, शिथिलपना, मासिक-स्राव का बहना, सूक्ष्म जीवों की हिंसा पाई जाती है आदि। चर्चा नं. 6 - क्या आर्यिका आदि की नवधा-भक्ति का उल्लेख मिलता है? समाधान – इस प्रश्न के उत्तर में हमारी तो निष्पक्ष राय है कि किसी भी शास्त्र में आर्यिकाओं की नवधा-भक्ति करने का उल्लेख नहीं है। व्यर्थ परिश्रम करके आर्यिका की नवधा-भक्ति सिद्ध करने का प्रयास क्यों किया जाता है? सभी आचार्यों ने मुनियों की ही नवधा-भक्ति करने का विधान मात्र ही किया है। जो अर्थापत्ति न्याय से यह सिद्ध करता है कि अन्य कोई भी पात्र या व्रती वगैरह नवधा-भक्ति के योग्य नहीं हैं। नवधा-भक्ति कहाँ-कहाँ नहीं करनी चाहिये? इसका उल्लेख कैसे करना संभव है? करुणादान से पहले, कन्यादान से पहले, समदत्ती दान से पहले, नवधा-भक्ति की जाये या नहीं, यह भी आचार्यों ने कहीं नहीं लिखा है, तो क्या इन दानों के पूर्व नवधा-भक्ति होनी चाहिये, क्योंकि निषेध तो किया नहीं है? और भी, शास्त्रों में नवदेवता की अष्टद्रव्य से पूजा का विधान तो लिखा है, पर अपने पुत्र की, अपनी पत्नी की, अपनी कन्या की तथा अपनी पुत्रवधू आदि की अष्टद्रव्य से पूजा नहीं करनी चाहिये, यह कहीं नहीं लिखा है तो क्या इनकी भी अष्टद्रव्य से पूजा होनी चाहिये क्योंकि निषेध तो लिखा नहीं है। सत्य तो यह है कि इस प्रकार वर्णन नहीं किया जाता। जहाँ जो कार्य करना होता है, उसका वर्णन किया जाता है। जो यह भी बताता है कि उसे अन्य प्रसंगों में नहीं करना चाहिये। इस विषय में एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक आदि की नवधा-भक्ति-पूर्वक आहार देने तथा आहार के समय पाद-प्रक्षालन, अर्घ-समर्पण आदि करने का एक भी प्रसंग किसी भी पौराणिक ग्रंथ में देखने में नहीं आया, जबकि मुनियों की जहाँ कहीं भी आहारचर्या का प्रसंग आया है, पुराण-ग्रंथों में उनकी पूजा आदि का भी स्पष्ट उल्लेख है। यदि पुराणकारों को आर्यिका आदि की, मुनियों की