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53/3 अनेकान्त/4 अर्थ - जो मुनि संयम से सहित हैं तथा आरंभ और परिग्रह से विरत हैं, वही सुर, असुर और मनुष्यों से युक्त लोक में वन्दनीय हैं।। 11।।
जो बाईस परीषह सहन करते हैं, सैंकड़ों शक्तियों से सहित हैं तथा कर्मो के क्षय एवं निर्जरा में कुशल हैं, ऐसे मुनि वंदना करने योग्य हैं।। 12 ।।
मुनिमुद्रा के सिवाय जो अन्य लिंगी हैं, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान से सहित हैं तथा वस्त्र के धारक हैं, वे इच्छाकार के योग्य कहे गये हैं।। 13।।
उपरोक्त गाथाओं के अनुसार मुनिलिंग के अलावा अन्य लिंग वंदनीय नहीं हैं। अतः जब वस्त्रधारी वंदनीय (नमोऽस्तु के योग्य) ही नहीं हैं, तब उनकी पूजा कैसे की जा सकती है? चर्चा नं. 2 - आर्यिकाओं को संयमी कहा है या नहीं? समाधान - वास्तव में आर्यिकायें देश-संयमी की कोटि में हैं, यदि कहीं प्रसंगवश आर्यिका को संयमी या संयत शब्द से संबोधन किया गया भी है, तो वह उपचार महाव्रता को ध्यान में रखकर ही कहा गया है। वस्तुतः देश-संयमी, असंयम मार्गणा में ही आता है। जो निम्न प्रमाणों से स्पष्ट है :अ. ण हु अत्थि तेण तेसिं इत्यीणं दुविह संजमोद्धरणं ।
संजमधरणेण विणा ण हु मोक्खो तेण जम्मेण।। 9511 (भाव संग्रह) अर्थ - उन स्त्रियों के दोनों प्रकार का संयम अर्थात् इन्द्रिय-संयम, प्राणी-संयम नहीं होता है। इसलिये संयम-धारण नहीं होने से उस जन्म से उनको मोक्ष नहीं कहा है।
असयमो का बटना के विषय में आचार्य कुन्दकन्द स्पष्ट लिखते हैं :-- आ. असंजद ण वंदे वच्छविहीणोवि सो ण वंदिज्ज।
दुण्णिवि हांति समाणा एगो वि ण संजदो होदि।। 26 ।। (दर्शन पाहुड़) अर्थ – असंयमी का नमोस्त नहीं करना चाहिये, और जो वस्त्र रहित होकर भी असंयमी हैं, वह भी नमस्कार के योग्य नहीं हैं। ये दोनों ही समान हैं। दोनों में एक भी संयमी नहीं हैं। इ. महाशास्त्र धवल प. (प्रकाशन सोलापुर - 1992) पृष्ट 335 पर भगवद
वीर सेनाचार्य. स्पष्ट धापणा कर रहे है :सवासत्वाद् प्रत्याख्यानगणस्थितानां संयमानुपपत्तेः। भावसंयमस्तासां सवाससामप्य विर ति त ? न तासां भावसंयमोऽस्ति, भावासंयमाविनाभाविवस्त्रापादाना-यथानुपपत्तेः।