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अनेकान्त / 53-2
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चलो रे भई शिवपुर को
गाड़ी खड़ी रे खड़ी है तैयार, चलो रे भई शिवपुर को
इस गाड़ी के सारे डिब्बे एक हि इन्जन खींचे
सभी इन्द्रियां चलती हैं इस मन के पीछे पीछे
मन के मिटाके विकार, चलो रे भई शिवपुर को
गाड़ी खड़ी रे खड़ी है तैयार, चलो रे भई शिवपुर को - 1
लालच, क्रोध, मान, माया का जब हो जाय अंत क्षमा भाव धारण करने पर बन जाता है संत संयम को बनाके आधार, चलो रे भई शिवपुर को गाड़ी खड़ी रे खड़ी है तैयार, चलो रे भई शिवपुर को - 2
सारे पापों का संचालक है परिग्रह का यंत्र जियो और जीने दो सब को यही अहिंसा मंत्र हिंसा का तज के विचार, चलो रे भई शिवपुर को गाड़ी खड़ी रे खड़ी है तैयार, चलो रे भई शिवपुर को - 3
श्री जिनवर के गंधोदक से धुल जाते हैं पाप पूजन-अर्चन आरति करके मिटें सभी संताप जिनवाणी को मन में धार, चलो रे भई शिवपुर को गाड़ी खड़ी रे खड़ी है तैयार, चलो रे भई शिवपुर को - 4
धीरे धीरे व्रत पालन से आतम् सुख मिलता है नियमित स्वाध्याय करने पर तत्त्व - ज्ञान बढ़ता है हौले हौले बढ़ेगी रफ़्तार, चलो रे भई शिवपुर को गाड़ी खड़ी रे खड़ी है तैयार, चलो रे भई शिवपुर को-5
निज पर की पहिचान बनाकर बनते आत्म ध्यानी करो तपस्या, कर्म नशाओ, कहती है जिनवाणी खुले हैं शिखरजी के द्वार, चलो रे भई शिवपुर को गाड़ी खड़ी रे खड़ी है तैयार, चलो रे भई शिवपुर को 6