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अनेकान्त/53-2 % %%%% %%%%% % %%%% %%% % शिखर जी के प्रति हमारे पूर्वजों का योगदान और हमारा कर्तव्य
- सुभाष जैन शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर जी जैनों की श्रद्धा का केन्द्र है, क्योंकि इस पर्वत से बीस तीर्थंकर एवं असंख्य मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया है। पर्वत पर 21 प्राचीन टोंके हैं। 20 में तीर्थंकरों के तथा एक टोंक में गणधरों के चरण चिन्ह प्रतिष्ठित हैं।
समय के साथ-साथ राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक उथल-पुथल के कारण जैन धर्म की प्राचीनता (निर्ग्रन्थता) पर कुठाराघात होता रहा। मूर्तिपूजक श्वेताम्बरों की उत्पत्ति का यही मुख्य कारण बना। ईसा की पांचवीं शताब्दी के अन्त में बल्लभी वाचना के समय जैनों का एक सम्प्रदाय प्राचीन जैन समाज से अलग हो गया। प्राचीन जैन दिगम्बर कहलाने लगे और अलग हुआ सम्प्रदाय मूर्तिपूजक श्वेताम्बर कहलाया।
उक्त तथ्यों की पुष्टि विश्व के इतिहासकारों ने इस प्रकार की है
".... श्वेताम्बरों का अस्तित्व अल्पकाल से बमुश्किल ईसा की पांचवीं शताब्दी से है जबकि दिगम्बर निश्चित रूप से वही निग्रंथ हैं जिनका वर्णन बौद्धों के धर्म ग्रंथों के अनेक परिच्छेदों में हुआ है। इसलिए वे ईसा पूर्व 600 वर्ष प्राचीन तो हैं ही। भगवान महावीर और उनके प्रारंभिक अनुयायियों की अत्यन्त प्रसिद्ध बाह्य विशेषता थी-उनके नग्न रूप में भ्रमण करने की क्रिया, और इसी से दिगम्बर शब्द बना।"
(एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका खण्ड-25 ग्यारहवां संस्करण सन् 1911) "...... हिन्दुओं के प्राचीन दर्शन ग्रन्थों में जैनियों को नग्न अथवा दिगम्बर शब्द से संबोधित किया गया है।" (श्री एच.एस. बिल्सन) __ "मथुरा से कुशाण काल निर्मित तीर्थंकरों की जो प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं उनमें यदि जिन भगवान खड्गासन मुद्रा में हैं तो निर्वस्त्र (नग्न) दिगम्बर हैं
और यदि पद्मासन में हैं तो उनकी बनावट इस प्रकार की है कि न तो उनके वस्त्र और न गुप्तांग दिखाई देते हैं। गुजरात के अकोटा स्थान से ऋषभनाथ 牙 % % %%%%% %% $ %% %%% %%%