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अनेकान्त/53-2 % %% %%%% % % %%% %% %%% %%%
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी का कार्यालय नियमानुसार बम्बई की हीराबाग धर्मशाला में खोला गया। सेठजी ने महामंत्री पद का काम अपने ऊपर लिया।
पूजा केस 7 मार्च 1912 को बाबू महाराज बहादुर सिंह ने श्वेताम्बर जैन संघ की ओर से, सेठ हुकुमचन्द तथा 18 अन्य भारतवर्षीय दिगम्बर जैन समाज के प्रमुख सदस्यों के विरुद्ध, आर्डर 8 रूल 1 के अनुसार, सब जज हज़ारीबाग की कचहरी में नालिश पेश की।
मुद्दई का दावा था कि श्री सम्मेद शिखर जी निर्वाण-क्षेत्र स्थित टोंक, मन्दिर, धर्मशाला सब श्वेताम्बर संघ द्वारा निर्मित हुई हैं। दिगम्बराम्नायी जैनियों को श्वेताम्बर आम्नाय के विरुद्ध और श्वेताम्बर संघ की अनुमति बिना प्रक्षाल-पूजा आदि करने का अधिकार नहीं है; न वह धर्मशाला में ठहर सकते हैं।
यह मुकदमा साढ़े चार बरस से ऊपर चला। उभय पक्ष का कई लाख रुपया व्यर्थ खर्च हुआ। अन्तिम निर्णय सब-जजी से 31 अक्टूबर 1916 को हुआ। सभी प्राचीन 21 टोंकों में प्रतिवादी दिगम्बरी संघ का प्रक्षाल-पूजा का अधिकार निश्चित पाया गया।
गांधीजी पंच बने 1917 का कांग्रेस अधिवेशन देखने के लिए मैं कलकत्ता गया। एक दिन महात्मा भगवान दीन जी के साथ मैं ब्रह्ममुहूर्त में महात्मा गांधी के निवास स्थान पर गया। महात्मा जी से निवेदन किया कि वह दिगम्बर-श्वेताम्बर समाज के पारस्परिक विरोध का, जो कई बरस से चल रहा है, जिसमें कई लाख रुपया उभय समाज का नष्ट हो चुका है और पारस्परिक मनोमालिन्य बढ़ता जा रहा है, अन्त करा दें। महात्मा गांधी ने हमारी प्रार्थना ध्यान से सुनी और मामले का निर्णय करना स्वीकार किया और कहा कि चाहे जितना समय लगे, मैं इस झगड़े का निबटारा कर दूंगा किन्तु उभय पक्ष इकरार नामा रजिस्टरी कराके मुझे दे दें कि मेरा निर्णय उभयपक्ष को नि:संकोच स्वीकार
और माननीय होगा। परन्तु मूर्तिपूजक श्वेताम्बरों ने गांधी जी के सुझाव को मानने से इन्कार कर दिया। % % %% %% %%%% %% %% %% %% % %%%