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वीर सेवा मंदिर का त्रैमासिक
अनेकान्त
प्रवर्त्तक : आ. जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर'
वर्ष - 58 किरण-3
जुलाई-सितम्बर 2000
सम्पादक :
डॉ. जयकुमार जैन
परामर्शदाता :
पं. पद्मचन्द्र शास्त्री
संस्था की
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वार्षिक शुल्क
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सदस्यों व मंदिरों के लिए
निःशुल्क
प्रकाशक :
भारतभूषण जैन, एडवोकेट
मुद्रक : मास्टर प्रिंटर्स - 110032
जीव ! तू अनादि ही तैं भूल्यौ शिव- गैलवा
जीव तू अनादि ही तैं भूल्यौ शिव- गैलवा मोह मद वार पियी, स्वपद विसार दियौ, पर अपनाय लियो, इन्द्रिय सुख में रचियौ, भय तैं न भियौ, न तजियौ मन मैलवा ।। ।। जीव तू अनादि ही तैं० ।। 1 ।।
मिथ्या ज्ञान आचरण, धरिकर कुमरंन, तीन लोक की धरन, तामें कियौ है फिरन, पायो न शरन, न लहायौ सुख सैलवा ।। ।। जीव तू अनादि ही तैं० ।। 2 ।।
अब नर भव पायो, सुथल सुकुल आयौ, जिन उपदेश भायौ, 'दौल' झट छिटकायौ, पर परनति दुखदायिनी, चुरैलवा ।।
तू
अनादि ही तैं० ।। 3 ।।
।। जीव
वीर सेवा मंदिर
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