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अनेकान्त/53-2 %%%%%%%%%% %% %% %% %% %%%
साँवलिया लोक गीत साँवलिया पारसनाथ शिखर पर भला विराजा जी भला विराजा जी भला विराजा जी, साँवलिया पारसनाथ शिखर पर भला विराजा जी स्वर्ण कूट पर ध्वज लहराये झांझर घंटा बाजा जी - साँवलिया ... 'वामा माता' ने सपनों का नृप से अर्थ कराया जी तीर्थकर जीव गर्भ में आया 'अश्वसेन' हर्षाया जी - साँवलिया ...
काशी नगरी में जन्में तुम, इन्द्रों ने नह्वन कराया जी तापस के जलते अलाव से, जोड़ा नाग बचाया जी - साँवलिया ...
बन में जाकर दीक्षा लीनी, आत्म ध्यान लगाया जी कमठ जीव की बाधाओं ने किंचित नहीं डिगाया जी - साँवलिया...
केवल ज्ञानी जान सुरों ने समोसरन रचाया जी गणधर ने वाणी समझाकर सच्चा मार्ग दिखाया जी - साँवलिया ...
पहुंच शिखरजी स्वर्ण कूट पर ऐसा ध्यान लगाया जी आठों कर्म नसाकर तुमने सिद्धों का पद पाया जी - साँवलिया ...
दूर-देश का यात्री इस सम्मेद शिखर पर आया जी चरणों का प्रक्षालन करके मन का मैल मिटाया जी - साँवलिया...
अष्ट द्रव्य से पूजा करके मन-वांछित फल पाया जी भक्ति-भाव से ध्यान लगाकर सारा पाप नसाया जी - साँवलिया ... सब सुख छोड़ 'शकुन' का मन तो दर्शन को ललचाया जी पद-चिन्हों का वन्दन करके मुक्ती का पथ पाया जी - साँवलिया ... %%%%%%%%% %%%% %% %%%% %%%%%