________________
अनेकान्त /53-2
25
气气卐蛳卐卐蛳
सांवलिया स्वामी
सांवलिया स्वामी, सांवलिया स्वामी
अब मोहे तारो जी, अब मोहे तारो सांवलिया स्वामी
साँवली सूरत मोहनी मूरत
तीन लोक के अंतरयामी
अब मोहे तारो जी, अब मोहे तारो सांवलिया स्वामी
नगर बनारस में जन्मे तुम
और हुए थे अवधी ज्ञानी धुनी लीन तापस से रक्षित करके नाग युगल दो प्राणी राज त्याग कर दीक्षा लीनी बन में तप करने की ठानी कमठ जीव के उपसर्गो से डिगे नहीं तुम आत्म ध्यानी केवल ज्ञान प्रगट होने पर गणधर ने वाणी पहिचानी सब जीवों को मोक्ष मार्ग की राह दिखाई जग - कल्याणी आठों कर्म नसाकर अपने सिद्ध हुए तुम अंतरयामी पद अंकित सम्मेद शिखर पर पूजा-पाठ करें सब प्राणी भव-बंधन की बाधाओं से व्याकुल हैं सांसारिक प्राणी श्रद्धा भाव निवेदन मेरा पार करो, मैं हूँ अज्ञानी
.अब मोहे
अब मोहे
अब मोहे
. अब मोहे
........ अब मोहे
纸蛳