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अनेकान्त/53-2 %% %% %%%%% % %% %% %%%%%%%
उस कण-कण प्रस्तर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो। दुखहारी गिरिवर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो॥-9 काल-दोष से वर्तमान में । आत्मलीन कैवल्य ज्ञान में। चौबीसी के बीस जिनेश्वर। मुक्त हुए हैं इस पर्वत पर ॥ इन्द्र देव ने स्वयं उतर कर। चिन्ह रचाये मोक्ष-स्थल पर॥ चरण-चिन्ह जिनके अंकित हैं। शिखरों पर टोकें निर्मित हैं। इस धरती-अंबर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो। दुखहारी गिरिवर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो।-10 कितने पाप मनुज करता है। पगला जीवन भर मरता है॥ कर्म-बंध से कातरता है। दुख सम्मेद शिखर हरता है। भक्ति-भाव से इस तीरथ पर। त्याग-तपस्या के मुनि-पथ पर ।। जो आते हैं, तर जाते हैं। जीवन सार्थक कर जाते हैं। ऐसी मुक्ति-डगर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो। दुखारी गिरिवर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो ॥-11 जो यात्री वंदन को आते। मुक्ति हेतु प्रेरित हो जाते॥ प्रक्षालन कर पद-छापों का। दोष नसाते निज पापों का॥ वीतराग का ध्यान धरे जो। जैन-धर्म का मनन करे जो॥ ऐसे जैन प्रवर की जय हो। ऐसे हर अंतर की जय हो । जय ऐसे सहचर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो।
दखहारी गिरिवर की जय हो।जय सम्मेद शिखर की जय हो॥-12 ओं ह्रीं सिद्धक्षेत्रोभ्यो नमः शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखराय जयमाला पूर्णाघनिर्वपामीति स्वाहा। गाथा शिखर सम्मेद की, जो भी मन से गाय। मुक्ति मिले उस जीव को, भवबंधन कट जाय।
(पुष्पाञ्जलिक्षिपेत्) %%%%% %%%%% %%% %% %%%%%%%%%