________________
21
अनेकान्त/53-2 %%% %%% %%% % %%% %% %%%% %
मद में सद्गति के अनुगामी। वैभव में काया के कामी ।। नर समान व्रत पालें कैसे। महाव्रती मुनिराजों जैसे॥ व्रतधारी मुनिवर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो॥ दुखहारी गिरिवर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो॥-5 यह सौभाग्य मात्र मानव का। व्रत से संकट काटे भव का। पर, मानव विमूढ़ अज्ञानी। सांसारिक काषायिक प्राणी॥ इच्छाओं का दास बना-सा। कुआं पी गया, फिर भी प्यासा॥ आओ, तृप्त स्वयं को करने। ढूँढें यहाँ ज्ञान के झरने । आती धर्म-लहर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो। दुखहारी गिरिवर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो॥-6 भव चौरासी लाख भवन में । जन्म-मरण के इस बंधन में। पशु-गति के दारुण दुख प्रतिक्षण। गाय-बैल या हिरण आदि बन॥ दुखद आपदाओं को भोगा। कब तक यों ही चलना होगा। तीरथ-द्वार मुक्ति का द्वारा। जीव-जगत् से हो निस्तारा॥ जैन-धर्म परिकर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो। दुखहारी गिरिवर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो॥-7 आगत-विगत नरक गति चारी। सहने को दारुण दुख भारी॥ खेल-कूद में खोया बचपन। काम-रोग में बीता यौवन ।। बची-खुची बूढ़ी काया में । उलझा रहा मोह माया में। चेत सके तो चेत कर्म से। अपनी जून सुधार धर्म से॥ बोल कि तीर्थंकर की जय हो। जय सम्मेद शिखर की जय हो। दुखहारी गिरिवर की जय हो।जय सम्मेद शिखर की जय हो॥-8 यह जयमाल विनम्र निवेदन। यह जयमाल नमन-अभिनंदन ॥ यह जयमाल गुणों का गायन। गाऊँ यह जयमाल मुदित मन ।। जय सम्मेद शिखर जय गिरिवर । इसकी रज को मस्तक पर धर ।। सिद्धों के चिन्हों पर चलकर । मुक्त हुए जहँ अगणित मुनिवर ।। %% %%% %%%%%%%% %%%%% %斯