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अनेकान्त/53-2 %%%%%% %% %% %%% %%%% %
सिद्धवरकूट-23 'सिद्ध' कूट से सिद्ध पद पाया 'अजितनाथ' तीर्थंकर ने। इन्द्र- देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने। इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर।
पद चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ।। ओं ह्रीं सिद्धवर कूट से श्री अजितनाथ जिनेन्द्रादि एक अरब अस्सी करोड़ चौव्वन लाख मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
श्री नेमिनाथ भगवान का वन्दन-24 मोक्ष गए सम्मेद शिखर पर काल-दोष से बीस जिनेश। कुन्द कुन्द स्वामी करते हैं बीसों को ही नमन विशेष ॥ नेमिनाथ तीर्थंकर का है मुक्ति धाम गिरनार शिखर।
कर उनका गुणगान चढ़ाऊँ अर्घ्य उन्हीं का सुमरन कर। ओं ह्रीं गिरनार पर्वत से श्री नेमिनाथ जिनेन्द्रादि बहत्तर करोड़ सात सौ मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
स्वर्णभद्र कट-25 'स्वर्ण' कूट पर सिद्ध पद पाया 'पार्श्वनाथ' तीर्थकर ने। इन्द्र-देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने॥ इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर।
पद-चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ॥ ओं ह्रीं स्वर्णभद्र कूट से श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्रादि बियासी करोड़ चौरासी लाख पैंतालीस हजार सात सौ बियालीस मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
आते जिसके द्वार पर करने कर्म विछेद ।
यह अनादि से पूज्य है, वीर्य शिखर सम्मेद ॥ ओं ह्रीं शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर से मुक्ति प्राप्त सभी सिद्धों को मन-वचन'काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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