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अनेकान्त/53-2 %%%%%% %%% % %% %% %% %%% %
ओं ह्रीं सिद्धक्षेत्रोभ्यो नमः शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखराय भव आताप विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा-2
हैं चौरासी लाख योनियाँ, लौट-लौट कर आया हूं। कर्म-चक्र में फंसा रहा हूं, कलपा हूं, पछताया हूं। श्वेत वरण के चुन अक्षत सम्मेद शिखर पर लाया हूं।
कर्म-बंध से छुट जाऊं अक्षय पद पाने आया हूं। ओं ह्रीं सिद्धक्षेत्रोभ्यो नमः शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखराय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा-3
काया के कल्पित करने को सुमन सुगंधित लाता हूं। काम-वेदना मिट नहिं पाती, सोच-सोच पछताता हूं। पारिजात के पुष्प चुने, सम्मेद शिखर पर लाया हूं। विषय-वासना नस जाये, मैं सिद्ध पद पाने आया हूं। ओं ह्रीं सिद्धक्षेत्रोभ्यो नमः शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखराय काम-बाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वयामीति स्वाहा-4 .
नश्वर देह की पुष्टि को नित षट्रस व्यंजन खाता हूं। उदर पूर्ति हो नहिं पाती, सोच-सोच पछताता हूं। सदनेवज पकवान लिए सम्मेद शिखर पर आया हूं।
क्षुधा रोग मिट जाय मेरा मैं सिद्ध पद पाने आया हूं। ओं ह्रीं सिद्धक्षेत्रोभ्यो नमः शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखराय क्षधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा-5'
सम्यक् ज्ञान मार्ग पाने को दीप जलाता आया हूं। मन का तिमिर नहीं मिट पाया, सोच-सोच पछताया हूं। रत्न जड़ित घृत दीपक ले सम्मेद शिखर पर आया हूं।
नश जाये अज्ञान-तिमिर, मैं सिद्ध पद पाने आया हूं। %%%%%% %% %%%%%%%% %%%%%%%%