________________
अनेकान्त/53-2 %%%%%%%% % %% %%%%%%%%%
ओं ह्रीं सिद्धक्षेत्रोभ्यो नमः शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखराय मोह अंधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा-6
कर्म- चक्र से बचने को अग्नी में धूप जलाता हूं। राग द्वेष मिट सका नहीं, यह सोच-सोच पछताता हूं। अगर तगर की धूप सुगंधित भक्ति-भाव से लाया हूं।
आठों कर्म दहन हो जाएं, सिद्ध पद पाने आया हूं। ओं ह्रीं सिद्धक्षेत्रोभ्यो नमः शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखराय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा-7
सांसारिक फल-रस चखने को, बार-बार ललचाया हूं। आत्म रस चख सका नहीं, मैं सोच-सोच पछताया हूं। भांति-भांति के उत्तम फल सम्मेद शिखर पर लाया हूं। निज स्वभाव में आ जाऊं मैं सिद्ध पद पाने आया हूं। ओं ह्रीं सिद्धक्षेत्रोभ्यो नमः शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखराय मोक्ष फल प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाम-8
कर्म-शक्ति क्षय करने को मैं अर्घ चढ़ाता आया है। निज गुण मैं पहचान न पाया, सोच-सोच पछताया हूं। अष्ट द्रव्य का अर्घ संजो सम्मेद शिखर पर आया हं। रत्नत्रय निधी मिल जाए, मैं सिद्ध पद पाने आया हूं। ओं ह्रीं सिद्धक्षेत्रोभ्यो नमः शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखराय
अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा-9 पूज्य शिखर सम्मेद पर, पूजूं मैं पद-छाप। मिट जायें इस जन्म में, जनम-जनम के पाप ॥
क्रम से कूटों पर सभी, कलें वंदना जाप। जग के बंधन तोड़कर , दूर कल संताप ।
(पुष्पाञ्जलिक्षिपेत्)
%
%%%%%%%%
%%%%%%%%%%
%%%%%