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अनेकान्त/53-2 %% %% %%%% %% %% %%%%% %%%
श्री सम्मेद शिखरजी पूजन शाश्वत है परिवर्तित जग में तीर्थराज सम्मेद शिखर मुक्त हुए प्रत्येक काल की चौबीसी के तीर्थंकर .. काल-दोष से वर्तमान में मोक्ष गए विंशति जिनवर इन्द्रदेव ने मेरुदण्ड से चिन्ह रचे मोक्ष-स्थल पर ........... 2 पद-चिन्हों पर टोंक बनी हैं ऊंचे-ऊंचे शिखरों पर जय-जय कारों से अनुगुंजित है यह धरती यह अम्बर अगणित मुनियों ने पर्वत से सिद्ध पद पाया तप धर कर इसी लिए पूरे पर्वत का पावन है कण-कण पत्थर वैराग्य भावना जागृत होती इस तीरथ का दर्शन कर पद-चिन्हों से प्रेरित होकर बढ़ जायें मुक्ति पथ पर ........... 5 मोक्ष गए उन सिद्धों का अह्वान करें हम सुमरन कर सिद्ध परमेष्ठी के गुण गाकर पूज रचाऊं पर्वत पर ........... 6 ओं ह्रीं शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर अत्र अवतर अवतर संबौषट् । ओं ह्रीं शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर अत्र तिष्ठ ठः ठः। ओं ह्रीं शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
मन का मैल मिटाने को नश्वर तन धोता आया हूं। मन की कालुष मिटी न फिर भी, सोच सोच पछताया हूं। निर्मल जल का कलश लिये सम्मेद शिखर पर आया हूं।
मिथ्या मैल धुले मेरा, मैं सिद्ध पद पाने आया हूं। ओं ह्रीं सिद्धक्षेत्रोभ्यो नमः शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखराय जन्मजरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा-1
तन मन शीतल रखने को मैं चन्दन खूब लगाता हूं। ताप कषाय नहीं मिट पाता, सोच-सोच पछताता हूं। केशर मिश्रित चन्दन ले सम्मेद शिखर पर आया हूं। मन्द कषाय हो जायं मेरी मैं सिद्ध पद पाने आया हूं।
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