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अनेकान्त/53-2 %%%%%%%%% % % %%%%%%%% ओं ह्रीं सुप्रभ कूट से श्री पुष्पदंत जिनेन्द्रादि एक कोड़ा कोड़ी निन्यानवे लाख सात हजार चार सौ अस्सी मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन- काय से वन्दन अर्धं निर्वपामीति स्वाहा।
मोहन कूट-8 'मोहन' कूट पे सिद्ध पद पाया 'पद्मप्रभु' तीर्थकर ने। इन्द्र-देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने ॥ इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर।
पद-चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ।। ओं ह्रीं मोहन कूट से श्री पद्मप्रभु जिनेन्द्रादि निन्यानवे करोड़ सतासी लाख तैंतालीस हजार सात सौ सत्ताईस मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
निरजर कूट-१ 'निरजर' कूट पे सिद्ध पद पाया 'मुनिसुव्रत' तीर्थंकर ने। इन्द्र-देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने ॥ इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर ।
पद-चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ॥ ओं ह्रीं निरजर कूट से श्री मुनिसुव्रत नाथ जिनेन्द्रादि निन्यानवे कोड़ा कोड़ी सतानवे करोड़ नौ लाख नौ सौ निन्यानवे मुनि सिद्ध भये तिनके चरणों में मन-वचन-काय से वन्दन अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
ललित कट-10 'ललित' कूट पर सिद्ध पद पाया 'चन्द्रप्रभु' तीर्थंकर ने। इन्द्र-देवगण सब मिल पहुंचे जिनवर की पूजा करने ॥ इसी कूट से मुनिराजों ने सिद्ध पद पाया तप धर कर। पद-चिन्हों पर अर्घ चढ़ाऊं जाकर श्री सम्मेद शिखर ॥
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