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अनेकान्त/522 %%% %%%%% %%(圖/% %%%% %% %%%
शाश्वत तीर्थाधिराज भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत 'तीर्थाटन' का विशिष्ट स्थान है। सभी धर्मों में तीर्थक्षेत्रों की वन्दना करना मानव-जीवन का अनिवार्य अंग माना गया है। यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी वय में तीर्थयात्रा के लिए लालायित रहता है। श्रमण संस्कृति के अन्तर्गत उन उन स्थानों को तीर्थक्षेत्र के रूप में बहुमान दिया गया है, जहां पर तीर्थंकरों के अतिशय हुए हैं या जहां से उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया है। अतिशय प्रायः देवकृत माने गए हैं और उनका प्रभाव कुछ काल-विशेष में ही होता है, इसीलिए समग्र जैन परम्परागत दार्शनिक विवेचना में मोक्ष को ही सर्वोपरि स्थान दिया गया है। सौभाग्य से हमें जैन परम्परा से सम्बद्ध अतिशय क्षेत्र और सिद्धक्षेत्र के रूप में अनेक क्षेत्र प्राप्त हैं, उदाहरण के लिए- उत्तर में हिमालय-कैलाश पर्वत, जहां से आदि तीर्थंकर ऋषभदेव ने निर्वाण प्राप्त किया। बिहार तो श्रमण परम्परा का हृदय-स्थल रहा है। बिहार स्थित सम्मेदाचल शाश्वत तीर्थक्षेत्र के रूप में सुविख्यात है। यह तो सर्वविदित है कि वर्तमान काल में सम्मेद शिखर से बीस तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किया है और असंख्य मुनि भी वहां से मोक्ष गए हैं।
बिहार प्रान्त में एक नदी पड़ती है। जिसे 'कर्मनासा नदी' के नाम से जाना जाता है। इस विषय में जैनेतर लोगों में यह धारणा है कि इस नदी के पार करते ही समस्त कर्म नष्ट हो जाते हैं। यह धारणा कब और कैसे पनपी, यह शोध-खोज का विषय हो सकता है, परन्तु यदि गम्भीरता से चिन्तन किया जाय तो स्पष्ट होगा कि बिहार श्रमण परम्परा के केन्द्र रूप में विख्यात था और तीर्थंकरों के प्रभाव में जो भी व्यक्ति आता था, वह उनका भक्त हो जाता था। यह तो श्रमण परम्परा के तत्कालीन प्रभाव की प्रतीक रूप में संसूचना मात्र है।
___ तीर्थंकर महावीर के पूर्व 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का लोकोत्तर प्रभाव था। उन्हीं के नाम से शाश्वत सम्मेद शिखर 'पार्श्वनाथ हिल' के नाम से %%%% %%%%% % %%% %%%%% %% %