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कनेकान्त/53-2
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ॐ नमः सिद्धेभ्यः
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सिद्धपद आत्मा की सर्वोच्च स्वाभाविक ऐसी अवस्था है जिसे प्राप्त कर भव भ्रमण से छुटकारा मिल जाता है। जैन धर्म में इस पद प्राप्ति हेतु दिगम्बरत्व धारण कर तप, त्याग, व्रत, संयम, ध्यानादि
का विधान है। जिस स्थान पर ऐसे साधुओं का निमित्त मिले, वह ___ स्थान भी तपस्वी संतों के प्रभाव से परमपूज्य हो जाता है
'कीटोऽपि सुमन:संगादारोहतिसतां शिरः'
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अनादि निधन श्री सम्मेद शिखर को जैसा सौभाग्य प्राप्त है, वैसा अन्य किसी क्षेत्र को प्राप्त नहीं है। यहां से भूतकाल के सभी तीर्थंकरों और वर्तमान काल के बीस तीर्थंकरों और असंख्यात मुनियों को सिद्धपद की प्राप्ति का सुयोग मिला है। एतदर्थ इस पर्वत के कण-कण का सदा से भक्ति-भाव पूर्वक वन्दन होता रहा है।
हमें परम हर्ष है कि श्री सुभाष जैन (शकुन प्रकाशन) महासचिव वीर सेवा मंदिर ने श्री सम्मेद शिखर क्षेत्र रक्षण में संलग्न रहते हुए, भक्ति में भाव विभोर होकर, स्वयं के भावों में पवित्रता अर्जन कर भक्तिगीत, आरती व पूजन लिखकर सर्व सामान्य के लिए भी पुण्यार्जन का अवसर प्रदान किया है। इस शुभ कार्य के लिए शुभकामनाएं व आशीर्वाद के साथ भावना भाता हूं, ऐसे ही आत्मकल्याण मार्ग में उनकी सदैव प्रवृत्ति बनी रहे।
- पद्मचन्द्र शास्त्री
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