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अनेकान्त
पेशे के भेदसे ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार भेद किए गए हैं ।
देवों में भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिपी और वैमानिक ये जो चार भेद हैं उनके चार अलग निकाय हैं, इस कारण ज्योतिषी बदलकर वैमानिक नहीं हो सकता और न वैमानिक बदलकर ज्योतिषी ही बन सकता है। इसही प्रकार अन्य भी किसी एक निकाय का देव दूसरे निकाय में नहीं बदल सकता ।
तियेचों में भी जो वृक्ष हैं वे कीड़े-मकोड़े नहीं होसकते, कीड़े-मकोड़े पक्षी नहीं हो सकते, जो पक्षी हैं वे पशु नहीं हो सकते; वनस्पतियों में भी जो आम हैं वह अमरूद नहीं हो सकता, जो अनार है वह अंगूर नहीं हो सकता; पक्षियों में भी तोता कबूतर नहीं हो सकता, मक्खी चील या कौआ नहीं बन सकता; पशुओं में भी कुत्ता गधा नहीं बन सकता; घोड़ा गाय नहीं बन सकता इत्यादि, परन्तु मनुष्यों में ऐसा कोई भेद नहीं है इसी से श्री गुणभद्राचार्यने कहा है
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वर्णाकृत्यादिभेदनां देहेऽस्मिन्न च दर्शनात् ब्राह्मण्यादिषु शूद्राद्यैर्गर्भाधानप्रवर्तनात् ।। नास्ति जातिकृती भेदो मनुष्याणां गवाश्ववत् । आकृतिग्रहणात्तस्मादन्यथा परिकल्प्यते ॥ - उत्तरपुराण पर्व ७४ अर्थात् - मनुष्यों के शरीरोंमें ब्राह्मणादि वणों की अपेक्षा आकृति आदि का कोई खास भेद न होनेसे और शूद्र आदिकों के द्वारा ब्राह्मणी आदि में गर्भ की प्रवृत्ति होसकनेसे उनमें जातिकृत कोई ऐसा भेद नहीं है जैसा कि बैल घोड़े आदि में पाया जाता
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[ कार्तिक, वीर - निर्वाण सं० २४६५
उन कन्याओं को 'कन्यारत्न' कहा है। इन म्लेच्छ कन्याओके साथ ब्याह करनेके बाद वे ही भरत महाराज संयम धारण कर और केवलज्ञान प्राप्तकर उसही भव से मोक्ष गए हैं। भरत महाराजके साथियों ने भी म्लेच्छ कन्याएँ ब्याही है । इसही प्रकार सबही समयों में उच्चजाति के लोग म्लेच्छ कन्याएँ व्याहते आए हैं । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये सब ही शूद्र कन्याओं को ब्याह सकते हैं। ऐसी आज्ञा तो आदि पुराण में स्पष्ट ही लिखी हैं । हिंदुओं के मान्यग्रन्थ मनुस्मृति में भी ऐसा ही लिखा है X । असे सौ दो सौ बरस पहले अरव के लोग अफरीका के हशियोंको जंगली पशुओं की तरह पकड़ लाते थे, और देश देशान्तरोंमें लेजाकर पशुओं ही के समान बेच देते थे, जो खरीदते थे वे उनको गुलाम बनाकर पशु-समान ही काम लेते थे। अनुमान सौ बरस से गुलामी की प्रथा बन्द हो जाने के कारण वे लोग अब आज़ाद हो गए हैं और विद्याध्ययन करके बड़े बड़े विद्वान् तथा
गुणवान बन गए हैं - यहां तक कि उनमें से कोई कोई तो अमरीका जैसे विशाल राज्यका सभापति चुना गया है और उसने बड़ी योग्यता के साथ वहाँ राज्य किया है।
यह भेद न होनेके कारण ही तो भरत महाराजन म्लेच्छों की कन्याओं से ब्याह किया हैं । आदिपुराण में
मनुष्यपर्याय सव पर्यायांमें उच्चतम मानी गई है, यहाँ तक कि वह देवांसे भी ऊँची है; तब ही तो उच्च जाति के देव भी इस मनुष्य पर्यायको पाने के लिए लालायित रहते हैं, मनुष्य पर्यायकी प्रशंसा सभी शास्त्रों ने मुक्तकण्ठसे गाई है। यहां हमको मनुष्यजातिको देवोंसे उच्च सिद्ध नहीं करना है, केवल इतना ही करना है कि देवों के समान मनुष्य भी सब उच्चगोत्री ही हैं। जिस प्रकार देवों
* शूद्रा शूद्रेण वोढव्या नान्था स्वां तांच नैगमः । वहेत्वां ते च राजन्यः स्वां द्विजन्मा क्वचिच्च ताः ॥ x शूद्रव भार्या शूद्रस्य सा च स्वा च विशः स्मृते । तं च स्वा चैव राज्ञश्च ताश्च स्वा चाग्रजन्मनः ॥