________________
व्यक्तित्व और कृतित्व
सफलता का मूल मन्त्र :
___ कुछ लोग इस बात की चर्चा करते रहते हैं, कि कवि जी के पास ऐसा कौन-सा जादू है, कि वे जिस काम को उठाते हैं, उसमें सफल हो जाते हैं। सन्त-सम्मेलन के काम को हाथ में लिया, तो उसमें सफल हो गए। साहित्य-साधना की, तो उसमें सफल हैं। निशीथ-भाष्य और निशीय-चूणि जैसे भीमकाय अन्य के सम्पादन का काम हाथ में पकड़ा, तो उसे शानदार ढंग से पूरा किया । आखिर, इन सफलताओं का मूल मंत्र उनके पास में कौन-सा है, और क्या है ?
यह वात स्पष्ट है, कि कवि जी महाराज किसी भी मंत्र, तंत्र एवं यंत्र में विश्वास नहीं करते। फिर भी यह सत्य है, कि वे अपने प्रारब्ध कार्य में सदा सफल होते हैं। इस सफलता का रहस्य है, उनके मनोवल में और योगवल में । वे जिस काम को हाथ में लेते हैं, उसमें पूरी तरह जुट जाते हैं। सफलता का मुख देखे विना वे कभी चैन से नहीं बैठते। काम छोटा हो, या वड़ा-उस काम का उत्तरदायित्व लेने के बाद उसे पूरा करने के लिए पूरा मनोवल और मनोयोग लगा देते हैं। आधे मन से काम करना उन्हें पसन्द नहीं है। कवि जी महाराज की सफलता का एक मात्र यही राज है। मनोवल और मनोयोग के बिना किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिल सकती है। जब वे किसी ग्रन्थ का लेखन प्रारम्भ करते हैं, तव पूरा मनोयोग उसमें लगा देते हैं। बस, यही उनकी सफलता का केन्द्र-विन्दु है। स्वतन्त्र व्यक्तित्व :
उपाध्याय अमर मुनि जी महाराज का व्यक्तित्व एक ऐसा व्यक्तित्व है, जो किसी पर भी आधारित नहीं है, बल्कि दूसरों को आधार देने वाला है। उन्होंने अपना विकास अपनी शक्ति पर किया है। उनका व्यक्तित्व सर्वथा स्वतंत्र है । न वह किसी को दवाता है,
और न किसी से दवना ही जानता है। दूसरों का शोपण कभी उन्होंने किया नहीं, और दूसरों के शोषण के शिकार वे कभी बनते नहीं। ' उनका व्यक्तित्व इतना अद्भुत, इतना अनोखा और इतना ऊर्जस्वित