________________
के आचरण का संकल्प ।
२३ भोग न भोगने के बाद में अनुताप ।
३४ पुत्रों का अनुगमन क्यों नहीं ?
३५ रोहित मच्छ की तरह धीर पुरुष ही संसार जाल को काटने में समर्थ ।
३६ वाशिष्ठी की भी पुत्र और पति के अनुगमन की इच्छा। ३७.३८ पुरोहित परिवार की प्रव्रज्या के बाद राजा द्वारा धन-सामग्री लेने की इच्छा। रानी कमलावती की फटकार । पूर्ति के लिए असमर्थ । धर्म की त्राणता । तोड़ कर मुनि-धर्म के
३६ समूचा जगत् भी इच्छा की ४० पदार्थ जगत् की अत्राणता ४१ रानी द्वारा स्नेह जाल को आचरण की इच्छा।
४२, ४३ राग-द्वेष युक्त प्राणियों की संसार में मूढ़ता।
पन्द्रहवां अध्ययन सभिक्षुक (भिक्षु के लक्षणों का निरूपण)
श्लोक १ मुनि व्रत का संकल्प । स्नेह-परिचय-त्याग तप आदि का परिचय दिए बिना भिक्षा की एषणा ।
२ रात्रि भोजन या रात्रि-विहार का वर्जन वस्तु के प्रति अमूर्च्छा-भाव ।
३
हर्ष और शोक में अनाकुलता ।
४ परीषह-विजय और समभाव की साधना ।
५ सत्कार, पूजा और प्रशंसा के प्रति उपेक्षा भावना ।
६ स्त्री-पुरुष की संगति का त्याग।
७ विद्याओं द्वारा आजीविका करने का निषेध ।
८ मंत्र, मूल आदि द्वारा चिकित्सा का निषेध ।
सोलहवां अध्ययन ब्रह्मचर्यं समाधि स्थान (ब्रह्मचर्य के दस
सूत्र १-३ अध्ययन का प्रारम्भ और दस समाधि स्थानों का नाम-निर्देश 1
४ स्त्री कथा वर्जन ।
५ स्त्रियों के साथ एक आसन पर बैठने का वर्जन । ६ दृष्टि-संयम ।
७ स्त्री - शब्द सुनने पर संयम ।
८ पूर्वकृत काम-क्रीड़ा की स्मृति का संयम ।
६ प्रणीत आहार का निषेध ।
१० मात्रा से अधिक आहार का निषेध ।
११ विभूषा वर्जन ।
१२ शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श-विजय ।
श्लोक १ एकान्त वास ।
(३२)
-
४ आचार्य, उपाध्याय की अवहेलना । ५ दर्शन-आचार में प्रमाद
६-१४ चारित्र - आचार में प्रमाद
Jain Education International
४४ विवेकी पुरुषों द्वारा अप्रतिबद्ध विहार ।
४५ रानी द्वारा राजा को भृगु पुरोहित की तरह बनने की
प्रेरणा ।
४६
४७
४८
निरामिष बनने का संकल्प ।
काम भोगों से सशंकित रहने का उपदेश ।
बन्धन मुक्त हाथी की तरह स्व-स्थान की प्राप्ति का उद्बोध ।
४६ राजा और रानी द्वारा विपुल राज्य और काम-भोगों का त्याग ।
५०
तीर्थङ्कर द्वारा उपदिष्ट मार्ग में घोर पराक्रम । दुःखों के अन्त की खोज ।
५१
५२ राजा रानी, पुरोहित, ब्राह्मणी, पुरोहित कुमारो द्वारा दुःख-विमुक्ति।
६ गृहस्थों की श्लाघा का निषेध ।
१०
इहलौकिक फल प्राप्ति के लिए परिचय का निषेध |
११ गृहस्थ द्वारा वस्तु न दिए जाने पर प्रद्वेष का निषेध ।
१२ गृहस्थ द्वारा वस्तु दिए जाने पर आशीर्वाद का निषेध । नीरस अन्न-पान की निन्दा का निषेध और सामान्य घरों की भिक्षा।
१३
१४
अभय की साधना ।
१५ आत्म-तुल्य भावना का विकास।
१६ शिल्प-जीवी न होने, घर, मित्र और परिग्रह से मुक्त, मन्द कषाय और असारभोजी होने का उपदेश ।
पृ० २६३-२७५
पृ० २५३-२६२
समाधि स्थानों का वर्णन)
निषेध |
५ स्त्री के शब्द, गीत आदि का श्रवण-वर्जन ।
६
पूर्वकृत क्रीडा रति का स्मरण त्याग ।
७ प्रणीत भोजन का वर्जन ।
२ स्त्री- कथा - वर्जन ।
३ स्त्री-परिचय और वार्तालाप का वर्जन ।
४ स्त्री का शरीर, अंग-प्रत्यंगों को देखने के प्रयत्न का
सतरहवां अध्ययन पाप श्रमणीय (पाप श्रमण के स्वरूप का निरूपण)
श्लोक १-३ ज्ञान आचार में प्रमाद।
८ परिमित भोजन का विधान ।
६ विभूषा वर्जन ।
१० शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श –— काम - गुणों का वर्जन ।
११-१३ दस स्थानों के सेवन का तालपुट विष से तुलना । १४ दुर्जय काम भोग और ब्रह्मचर्य में शंका उत्पन्न करने वाले सभी स्थानों के वर्जन का उपदेश ।
१५ भिक्षु का धर्म- आराम में विचरण।
१६
ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति देव आदि सभी से वन्दनीय ।
१७ ब्रह्मचर्य की साधना से सिद्धत्व की प्राप्ति ।
For Private & Personal Use Only
पृ० २७६ - २८४
१५,१६ तप आचार में प्रमाद
१७-१६ वीर्य- - आचार में प्रमाद
२०
पाप श्रमण की इहलोक और परलोक में व्यर्थता । २१ सुव्रती द्वारा इहलोक और परलोक की आराधना ।
www.jainelibrary.org