Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्रथम अध्ययन:द्वितीय उद्देशक: सूत्र ३३८
२७
से भिक्खू वा २ पाईणं संखडिं णच्चा पडीणं गच्छे अणाढायमाणे, पडीणं संखडिं णच्चा पाईणं गच्छे अणाढायमाणे, दाहिणं संखडिं णच्चा उदीणं गच्छे अणाढायमाणे, उदीणं संखडिं णच्चा दाहिणं गच्छे अणाढायमाणे। जत्थेव सा संखडी सिया, तंजहागामंसि वा णगरंसि वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा आसमंसि वा संणिवेसंसि वा जाव रायहाणिंसि वा संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। केवली बूया- आयाणमेतं । संखडि संखडिपडियाए अभिसंधारेमाणे आहाकम्मियं वा उद्देसियंवा मीसज्जायं वा कीयगडं वा पामिच्चं वा अच्छेज्जं वा अणिसटुं वा अभिहडं वा' आहट्ट दिज्जमाणं भुंजेज्जा, अस्संजते २ भिक्खुपडियाए खुड्डियदुवारियाओ २ महल्लियाओ कुज्जा, महल्लियदुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा,समाओ सेज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सेज्जाओ समाओ कुज्जा; पवाताओ सेज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सेज्जाओ पवाताओ कुज्जा, अंतो वा बहिं वा कुज्जा उवस्सयस्स हरियाणि छिंदिय २ दालिय संथारगं संथारेज्जा, एस' खलु भगवया मीसज्जाय अक्खाए।
तम्हा से संजते णियंठे तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए।
३३८. वह भिक्षु या भिक्षुणी अर्ध योजन की सीमा से पर (आगे-दूर) संखडि (बड़ा
१. इसके बदले किसी-किसी प्रति में 'आययणमेयं' पाठ है। अर्थात् यह दोषों का आयतन-स्थान है। २. यहाँ 'अस्संजए' के बदले 'अस्संजए स भिक्खु' पाठान्तर भी है। अर्थ होता है - वह भिक्षु असंयमी
३. 'खुड्डियाओ दुवारियाओ' .... आदि पाठ की व्याख्या चूर्णिकार ने इस प्रकार की है - 'खुड्डियाओ
दुवारियांओ मह०' प्रकाश-प्रवात-अवकाशार्थ बहुयाण, 'महल्लियाओ दुवारियाओ खुड्डियाओ' सुसंगुप्तणिवातार्थ थोवाणं । अंतो वा बाहि वा हरिया छिंदिय छिंदिया दालिय त्ति कुसा खरा पितॄत्ता संथरंति। अर्थात् -छोटे दरवाजे बड़े करवाएगा- अधिक प्रकाश, हवा और अधिक लोगों के समावेश के लिये। अथवा बड़े दरवाजे छोटे करवाएगा। मकान को अच्छी तरह सुरक्षित एवं निर्वात (बंद) बनाने तथा सीमित लोगों के निवास के लिए (उपाश्रय) (साधु के लिए बनाए गए वासस्थान) के अन्दर या बाहर उगी हुई हरियाली को काट-काटकर तथा कुशों को उखाड़कर, खुरदरी जमीन कूट-पीटकर सम बनाएगा उस पर
साधु का आसन (तख्त, पाट या अन्य सामान) लगाएगा। ४. यहाँ '२' का अंक पुनरुक्ति का सूचक है। ५. इसके बदले १. एस विलुंगयायो सिज्जाए (सज्जाए) २. एस. विलुगगयामो मीसज्जाए-३. एस खलु
भगवया मो मीसज्जाए; ४. एस खलु भगवया सेज्जाए अक्खाए आदि पाठान्तर हैं। अर्थ इस प्रकार है (१) यह साधु अकिंचन होने के कारण वासस्थान का संस्कार कर न सकेगा, अत: मुझे ही कराना होगा। (२) निर्ग्रन्थ अकिंचन है, इस कारण वह गृहस्थ या कारणवश वह साधु स्वयं संस्कार कराएगा। (३) भगवान् ने इसे मिश्रजात दोष कहा है। (४) यह सब भगवान् ने शय्यैषणा नामक अध्ययन में कहा है।