Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
निकट आकर पूछें कि आयुष्मन् श्रमण ! क्या आपने इस मार्ग में जौ, गेहूं आदि धान्यों का ढेर, रथ, बैलगाड़ियाँ, या स्वचक्र या परचक्र के शासन के सैन्य के नाना प्रकार के पड़ाव देखे हैं? इस पर साधु उन्हें कुछ भी न बताए, (न ही दिशा बताए, वह उनकी बात को स्वीकार न करे, मौन धारण करके रहे । अथवा जानता हुआ भी 'मैं नहीं जानता,' यों उपेक्षा भाव से जवाब दे ( । ) तदनन्तर यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे ।
५१३. ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु-साध्वी को यदि मार्ग में कहीं प्रातिपथिक मिल जाएँ और वे उससे पूछें कि यह गाँव कैसा है, या कितना बड़ा है? यावत् राजधानी कैसी है या कितनी बड़ी है ? यहाँ कितने मनुष्य यावत् ग्रामयाचक रहते हैं ? आदि प्रश्न पूछे तो उनकी बात को स्वीकार न करे, न ही कुछ बताए । मौन धारण करके रहे। (अथवा जानता हुआ भी मैं नहीं जानता, यों उपेक्षाभाव से उत्तर दे दे।) फिर संयमपूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे । ५१४. ग्रामानुग्राम विचरण करते समय साधु-साध्वी को मार्ग में सम्मुख आते हुए कुछ पथिक मिल जायें और वे उससे पूछें- 'आयुष्मन् श्रमण ! यहाँ से ग्राम यावत् राजधानी कितनी दूर है? तथा यहाँ से ग्राम यावत् राजधानी का मार्ग अब कितना शेष रहा है?' साधु इन प्रश्नों के उत्तर में कुछ भी न कहे, न ही कुछ बताए, वह उनकी बात को स्वीकार न करे, बल्कि मौन धारण करके रहे। (अथवा जानता हुआ भी, मैं नहीं जानता, ऐसा उत्तर दे ।) और फिर यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे ।
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विवेचन – विहारचर्या और धर्मसंकट- सूत्र ५१० ५११ इन दो सूत्रों में प्रातिपथिकों द्वारा पशु-पक्षियों और वनस्पति, जल एवं अग्नि के विषय में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने का निषेध है। उसके पीछे शास्त्रकार का आशय बहुत गम्भीर है, मनुष्य एवं पशु-पक्षी आदि के विषय में प्रश्न करने वाला या तो शिकारी हो सकता है, या वधिक, वहेलिया, कसाई या लुटेरा आदि में से कोई हो सकता है, साधु से पूछने पर उनके द्वारा बता देने पर उसी दिशा में भाग
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कर उस जीव को पकड़ सकता है या उसकी हत्या कर सकता है; इस हत्या में परम अहिंसामहाव्रती साधु निमित्त बन जाएगा। दूसरे सूत्र में ऐसे असंयमी, भूखे-प्यासे, शीत - पीड़ित लोगों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न हैं, जो साधु के बता देने पर उन जीवों की विराधना व आरम्भसमारम्भ कर सकते हैं। अतः दोनों प्रकार के प्रश्नों में सर्वप्रथम साधु को मौन धारण का शास्त्र आदेश है, किन्तु कई बार मौन रहने पर भी समस्या विकट रूप धारण कर सकती है, साधु के प्राणों पर भी नौबत आ जाती है, पूछने वाला साधु के द्वारा कुछ भी न बताने पर क्रूर होकर प्राण हरण करने को उद्यत हो जाता है, ऐसी स्थिति में जिनकल्पिक मुनि तो मौन रहकर अपने प्राणों को न्यौछावर करने में तनिक भी नहीं हिचकते, लेकिन स्थविरकल्पी अभी इतनी उच्चभूमिका पर नहीं पहुँचा है, इसलिए शास्त्रकार ऐसी धर्मसंकटापन्न परिस्थिति में उसके लिए दूसरा विकल्प प्रस्तुत करते
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