Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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छठा अध्ययन : प्रथम उद्देशक: सूत्र ५९६-५९८
दिया जाता है, वह पात्र । वृत्तिकार के अनुसार 'संगइयं' का अर्थ है— दाता द्वारा उस पात्र में प्रायः स्वयं भोजन किया गया हो, वह स्वांगिक पात्र, वेजयंतियं का अर्थ है— दो-तीन पात्रों में बारीबारी से भोजन किया जा रहा हो, वह पात्र । १ अनेषणीय- -पात्र- - ग्रहणनिषेध
५९६. से णं एतात एसणाए एसमाणं पासित्ता परो वदेज्जा आउसंतो समणा! जासि तुम मासेण वा जहा वत्थेसणाए । ३
५९७. से णं परो णेत्ता वदेज्जा
आउसो भइणी! आहरेयं पायं, तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा वसाए वा अब्भंगेत्ता वा तहेव सिणाणादि तहेव, सोतोदगादि कंदादि तहेव । ५
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५९८. से णं परो णेत्ता वदेज्जा आउसंतो समणा! मुहुत्तगं २ अच्छाहि जाव ताव अम्हे असणं वा ४ उवकरेमु वा उवक्खडेमु वा, तो ते वयं आउसो ! सपाणं सभोयणं पडिग्गहगं दासामो, तुच्छए पडिग्गहए ६ दिण्णे समणस्स णो सुठु णो साहु भवति । से पुव्वामेव अलोएज्जा - आउसो ! ति वा, भइणी ! ति वा, णो खलु मे कप्पति आधाकम्मिए असणे वा ४ भोत्त वा पाय एवा, मा उवकरेहि, मा उवक्खडेहि ७, अभिकंखसि मे दाउं एमेव दलयाहि । से सेवं वदंतस्स परो असणं वा ४ उवकरेत्ता उवक्खडेत्ता सपाणं पडिग्गहगं दलएज्जा, तहप्पगारं डिग्गहगं अफासुयं जाव णो पडिगाहे ज्जा ।
२.
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५९६. साधु को इसके (पात्रैषणा के) द्वारा पात्र - गवेषणा करते देखकर यदि कोई गृहस्थ कहे कि " आयुष्मन् श्रमण ! अभी तो तुम आओ, तुम एक मास यावत् कल या परसों तक आना......' शेष सारा वर्णन वस्त्रैषणा अध्ययन में जिस प्रकार है, उसी प्रकार जानना । इसी प्रकार यदि कोई गृहस्थ कहे — आयुष्मन् श्रमण ! अभी तो तुम जाओ, थोड़ी देर बाद आना, हम तुम्हें एक पात्र देंगे, आदि शेष वर्णन भी वस्त्रैषणा अध्ययन की तरह समझ लेना चाहिए।
१.
५.
(क) आचारांग चूर्णि मू./ पा./ टि./ पृ./ २१५
(ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३९९
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एसमाणं पासित्ता परासे वदेज्जा" के बदले 'एसमाणं पास णेत्ता वदेज्जा' 'एसमाणं परो पासित्ता वदेज्जा' आदि पाठान्तर हैं।
४. तुलना कीजिए.
३. 'जहावत्थेसणाए' से यहाँ शेष समग्र पाठ वस्त्रैषणा- अध्ययन के सूत्र ५६१-५६२ के अनुसार समझें । -'जे भिक्खू ! नो नवए मे परिग्गहे लद्धेति कट्टु तेल्लेण घएण वा णवणीएण वा वसा वा मक्खेज वा भिलिंगेग्ज वा ।'- निशीथ सूत्र १४/१२
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जहाँ-जहाँ 'तहेव' पाठ है, वहाँ वहाँ सर्वत्र वस्त्रैषणा अध्ययन के सूत्र ५६४, ५६५, ५६६, ५६७ के अनुसार
वर्णन समझें।
६. 'पडिग्गहए' के बदले पाठान्तर है— “पडिग्गहं, पडिग्गहे, पडिग्गए ।"
७. किसी-किसी प्रति में 'मा उवक्खडेहि' पाठ नहीं है।