Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र ७४४
७४४. श्रमण भगवान् महावीर के पिता काश्यप गोत्र के थे। उनके तीन नाम इस प्रकार कहे जाते हैं, जैसे कि – १. सिद्धार्थ, २. श्रेयांस और ३. यशस्वी ।
श्रमण भगवान् महावीर की माता वाशिष्ठ गोत्रीया थीं । उनके तीन नाम इस प्रकार कहे जाते हैं, जैसे कि - १. त्रिशला, २. विदेहदत्ता और ३. प्रियकारिणी ।
श्रमण भ० महावीर के चाचा 'सुपार्श्व' थे, जो काश्यप गौत्र के थे ।
श्रमण भ० महावीर के ज्येष्ठ भ्राता नन्दीवर्द्धन थे, जो काश्यप गोत्रीय थे ।
श्रमण भ० महावीर की बड़ी बहन सुदर्शना थी, जो काश्यप गोत्र की थी । श्रमण भ० महावीर की पत्नी 'यशोदा' थी, जो कौण्डिन्य गोत्र की थी।
श्रमण भ० महावीर की पुत्री काश्यप गौत्र की थी। उसके दो नाम इस प्रकार कहे जाते हैं, जैसे कि - १. अनोज्जा, (अनवद्या) और २. प्रियदर्शना ।
श्रमण भ० महावीर की दौहित्री कौशिक गोत्र की थी। उसके दो नाम इस प्रकार कहे जाते हैं, जैसे कि १. शेषवती तथा, २. यशोमती या यशस्वती ।
विवेचन - भगवान् महावीर के परिवार का संक्षिप्त परिचय - प्रस्तुत सूत्र में भगवान् महावीर के. पिता, माता, चाचा, भाई, बहन, पत्नी, पुत्री और दौहित्री के नाम और गोत्र का परिचय दिया गया है। भ० महावीर के पिता का नाम श्रेयांस क्यों पड़ा ? इस सम्बन्ध में चूर्णिकार कहते हैं कि'श्रेयांसि श्रयन्ति अस्मिन्निति श्रेयांसः।' अर्थात् — जिसमें श्रेयों – कल्याणों का आश्रय स्थान हो, वह श्रेयांस है। माता का एक नाम 'विदेहदिन्ना' इसलिए पड़ा कि वे 'विदेहेन दिन्ना' –विदेह (विदेहराज ) द्वारा प्रदत्त थीं । २ भगवान् की भगिनी सुदर्शना उनसे बड़ी थी या छोटी थी? यह चिन्तनीय है । इस सम्बन्ध में कल्पसूत्रकार मौन हैं। आचारांग में प्रस्तुत पाठ में किसी प्रति में 'कणिट्ठा' पाठ था, उसे काट कर किसी संशोधक ने 'जेट्ठा' संशोधन किया है। २ विशेषावश्यक भाष्य में महावीर की पुत्री के नाम 'ज्येष्ठा, सुदर्शना एवं अनवद्यांगी' बताए हैं। जबकि यहाँ भ. महावीर की बहन का नाम सुदर्शना एवं पुत्री का नाम 'अनवद्या' व प्रियदर्शना बताया गया है। अतः ज्येष्ठभगिनी एवं पुत्री के नामों में कुछ भ्रान्ति-सी मालूम होती है । ३ यद्यपि 'अणोज्जा ' का संस्कृत रूपान्तर अनवद्या होता है। किन्तु चूर्णिकार ने 'अनोजा' रूपान्तर करके अर्थ किया है 'नास्य ओजं अणोज्जा ।' अर्थात् जिसमें ओज (बल) न हो वह 'अनोजा' है। अर्थात्– जो बहुत ही कोमलांगी नाजुक हो ।
१. आचारांग चूर्णि मू० पा० टि० पृ० २६४ - २६५
२.
(क) आचारांग मूलपाठ सटिप्पण (मुनि जम्बूविजयजी सम्पादित ) पृ० २६४
(ख) कल्पसूत्र मूलपाठ में 'भगिणी सुदंसणा' इतना ही पाठ है— पृ० १४५ ( देवेन्द्र मुनि) ।
(क) विशेषावश्यक भाष्य गा. २३०७
३.
३७५
"जिट्ठा सुदंसण जमालिणीज सावत्थि तिंदुगुज्जाणे..'' मू० पा० १२६
४. आचारांग चूर्णि मू० पा० टि० पृ० २६५