Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
प्राणातिपात आदि शब्दों की व्याख्या–हिंसा से स्थूल दृष्टिवाले लोग केवल हनन करना अर्थ ही समझते हैं, इसीलिए तो शास्त्रकार ने यहाँ 'प्राणातिपात' शब्द मूलपाठ में रखा है। प्राणातिपात का अर्थ है प्राणों का अतिपात –नाश करना। प्राण का अर्थ (यहाँ केवल श्वासोच्छ्वास या प्राणअपानादि पंच प्राण नहीं है, अपितु ५ इन्द्रिय, ३ मन-वचन-कायाबल, श्वासोच्छ्वास और आयुबल, यों दस प्राणों में से किसी भी एक या अधिक प्राणों का नाश करना प्राणातिपात हो जाता है। वर्तमान लोकभाषा में इसे हिंसा कहते हैं। स्थलदष्टि वाले अन्यधर्मीय लोग स्थल आंखों से दिखाई देने वाले (स) चलते-फिरते जीवों को ही जीव मानते हैं, एकेन्द्रिय जीवों को नहीं, इसलिए यहाँ मुख्य ४ प्रकार के जीवों - सूक्ष्म, बादर, स्थावर और त्रस का उल्लेख किया है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिकाय के एकेन्द्रिय जीवों को स्थावर कहते हैं और द्वीन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों को त्रस कहते हैं। सूक्ष्म और बादर – ये दोनों विशेषण एकेन्द्रिय जीवों के हैं। जावज्जीवाए - आजीवन कृत, कारित और अनुमोदन - ये तीन करण और मन-वचन और काया का व्यापार, ये तीन योग कहलाते हैं। १ सव्वं पाणातिपातं - सर्वथा सभी प्रकार के प्राणातिपात का त्याग अहिंसा महाव्रत है। प्रथम महाव्रत और उसकी पांच भावना
७७८. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति ३ _ [१] तत्थिमा पढमा भावणा -रियासमिते ५ से णिग्गंथे, णो अणरियासमिते त्ति। केवली बूया -इरियाअसमिते ६ से णिग्गंथे पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं अभिहणेज वा वत्तेज वा परियावेज वा लेसेज वा उद्दवेज वा। इरियासमिते से णिग्गंथे, णो इरियाअसमिते त्ति पढमा भावणा।
१. (क) दशवै. अ.४, सू. ११, जि. चू. पृ. १४६, अग. चू. पृ.८०, हारि. टी. पृ. १४४
(ख) दशवै. जि. चू. १४६, हारि. टीका पृ. १४४, १४५, अग. चू.८०-८१ २. (क) देखिये, अहिंसा महाव्रत का लक्षण – योगशास्त्र (हेमचन्द्राचार्य) प्रकाश १/२०
(ख) प्रमत्तयोगात्प्राण व्यवरोपणं हिंसा - तत्वार्थ सूत्र अ.७/१३ (ग) जातिदेशकालसमयाऽनवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् -- योग-दर्शन, पाद २/सू. ३१ ।
महाव्रत जाति देश काल और समय (कुलाचार) के बंधन से रहित सार्वभौम सर्वविषयक होते हैं। ३. 'भवंति' के आगे पाठ है-'भवंति,तं जहा'।
महाव्रत की पच्चीस भावनाओं के सम्बन्ध में चूर्णिकार सम्मत पाठ प्रस्तुत पाठ से भिन्न है। तथा इस प्रकार का पाठ आवश्यक चूर्णि प्रतिक्रमणाध्ययन पृ. १४३-१४७ में भी मिलता है। देखें आचा. मू. पा. टिप्पण पृ.
२७५-८०-८१ ५. 'रियासमिते' के बदले पाठान्तर है -'इरियासमिए', 'इरियासमिते'। ६. 'इरिया असमिते' के बदले पाठान्तर है- 'अहरियासमिते', 'अणइरियासमिते।' ७. इसके बदले 'इरियाअसमिते' पाठान्तर है।