Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
विवेचन— पंचम महाव्रत की प्रतिज्ञा और उसकी पाँच भावनाएँ- प्रस्तुत सूत्रत्रयी में भी पूर्ववत् तीन बातों का मुख्यतया उल्लेख हैं—(१) पंचम महाव्रत की प्रतिज्ञा का रूप, (२) पंचम महाव्रत की भावनााएँ, (३) पंचम महाव्रत के सम्यक् आराधन का उपाय।
इन तीनों पहलुओं का विवेचन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए।
अन्य शास्त्रों में भी पंच भावनाओं का उल्लेख–समवायांग सूत्र में पंचम महाव्रत की पांच भावनाओं का क्रम इस प्रकार है- (१) श्रोत्रेन्द्रियरागोपरति, (२) चक्षुरिन्द्रिय-रागोपरति, (३) घ्राणेन्द्रिय-रागोपरति, (४) जिह्वेन्द्रिय-रागोपरति और (५) स्पर्शेन्द्रिय-रागोपरति।
आचारांगचूर्णिसम्मत पाठ के अनुसार ५ भावनाएँ इस प्रकार हैं- (१) श्रोत्रेन्द्रिय से मनोज्ञ-अमनोज्ञ शब्द सुनकर मनोज्ञ पर आसक्ति आदि न करे, न उन पर राग-द्वेष करके आत्मभाव का विघात करे, अमनोज्ञ शब्द सुनकर न तिरस्कार करे, न निन्दा करे, न उस पर क्रोध करे, न गर्दा करे, न ताड़न-तर्जन करे, न उसका परिभव करे, न उसका वध करे।
(२) चक्षुरिन्द्रिय से मनोज्ञ-अमनोज्ञ रूप देखकर न तो मनोज्ञ पर आसक्ति, रागादि या द्वेष, घृणा आदि करे।
(३) घ्राणेन्द्रिय से मनोज्ञ-अमनोज्ञ गंध पाकर उनके प्रति भी पूर्ववत् आसक्ति, रागादि या द्वेष, घृणा आदि न करे।
(४) जिह्वेन्द्रिय से प्रिय-अप्रिय रस पाकर उनके प्रति भी पूर्ववत् आसक्ति, राग आदि या द्वेष, घृणा आदि न करे।।
(५) स्पर्शेन्द्रिय से मनोज्ञ-अमनोज्ञ स्पर्श के प्रति राग-द्वेष आदि न करे।
आवश्यकचूर्णि में इस प्रकार पांच भावनाएँ प्रतिपादित हैं-"पंडित मुनि मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द, रूप , रस, गंध और स्पर्श पाकर एक के प्रति राग-गृद्धि आदि तथा दूसरे के प्रति प्रद्वेष, घृणा आदि न करे।
तत्वार्थसूत्र में भी इन पांच भावनाओं का उल्लेख है- मनोज्ञ और अमनोज्ञ पांच इन्द्रियविषयों में क्रमशः राग और द्वेष का त्याग करना, ये अपरिग्रहमहाव्रत की पांच भावनाएँ हैं। १. समवायांगसूत्र में- "सोइंदियरागोवरई, चक्खिदियारागोवरई, घाणिंदियरागोवरई, जिभिदियरागोवरई,
फासिंदियरागोवरई।"-समवाय २५ २. सोइंदिएण मणुण्णाऽमणुण्णाई सद्दाई सुणेत्ता भवति, से निग्गंथे तेसु मणुण्णाऽमणुण्णेसु सद्देसु णो सजेज्ज
वा रज्जेज वा गिज्झेज वा मुच्छेज्ज वा अज्झोववजेज वा विणिघातमावजेज वा, अह हीलेज वा निंदेज वा खिंसेज वा गरहेज वा तज्जेज वा तालेज वा परिभवेज वा, पव्वहेज वा। चक्खिदिएण मणुण्णामणुण्णाई रूवाई.... जधा सद्दाइंएमेव । ... एवं घाणिदिएण अग्घाइत्ता .... जिब्भिदिएण आसाएत्ता फासिंदिएण पडिसंवेदेत्ता।
-आचारांग चूर्णिसम्मत विशेष पाठ टि. पृ. २८१