Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र ७७८
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'आइक्खति, भासेति, परूवेति' इन तीन क्रिया पदों में अन्तर—यों तो तीनों क्रियापद समानार्थक प्रतीत होते हैं, परन्तु प्राकृत शब्दकोष के अनुसार इनके अर्थ में अन्तर है- 'आइक्खति' का अर्थ है—सामान्य रूप से कथन करता है, 'भासेति' का अर्थ है—विशेषरूप से व्याख्या करता है और 'परूवेति ' का अर्थ है—सिद्धान्त और तद्व्यतिरिक्त वस्तु तत्त्व का प्रतिपादन करता है। ये तीनों क्रिया पद भगवान् द्वारा दिये गए उपदेश की शैली एवं क्रम को सूचित करते हैं ? प्रथम महाव्रत
७७७. पढमं भंते! २ महव्वयं पच्चक्खामि सव्वं पाणातिवातं।से सुहुमं वा बायरं वा तसं वा थावरं वाणेव सयं पाणातिवातं करेजा ३३ जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणसा वयसा कायसा। तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि ५ अप्पाणं वोसिरामि।
७७७. भंते ! मैं प्रथम महाव्रत में सम्पूर्ण प्राणातिपात ( हिंसा) का प्रत्याख्यान-त्याग करता हूँ। मैं सूक्ष्म-स्थूल (बादर) और त्रस-स्थावर समस्त जीवों का न तो स्वयं प्राणातिपात (हिंसा) करूँगा, न दूसरों से कराऊँगा और न प्राणातिपात करने वालों का अनुमोदन-समर्थन करूँगा; इस प्रकार मैं यावजीवन तीन करण से एवं मन-वचन-काया से - तीन योगों से इस पाप से निवृत्त होता हूँ। हे भगवन् ! मैं उस पूर्वकृत पाप (हिंसा) का प्रतिक्रमण करता, (पीछे हटता)हूँ, (आत्मसाक्षी-से-) निन्दा करता हूँ और (गुरु साक्षी से—) गर्दा करता हूँ, अपनी आत्मा से पाप का व्युत्सर्ग (पृथक्करण) करता हूँ।'
विवेचन—प्रथम महाव्रत की प्रतिज्ञा का रूप- प्रस्तुत सूत्र में भगवान् द्वारा उपदिष्ट प्रथम महाव्रत-प्राणातिपात-विस्मरण (अहिंसा) की प्रतिज्ञा का रूप दिया गया है। इसमें मुख्यतया ३ बातों का उल्लेख है- (१) हिंस्य जीवों के मुख्य प्रकार का (२) प्राणातिपात का जीवनभर तक तीन करण (कृत-कारित-अनुमोदन) से तथा तीन योग (मन-वचन-काया) से सर्वथा त्याग का और (३) पूर्वकाल में किये हुए प्राणातिपात आदि के पाप का प्रतिक्रमण, आत्म-निन्दा, गर्दा और व्युत्सर्ग का।६
१. (क) पाइअ-सद्द-महण्णवो पृ. १०१, ६५०, ६६८
(ख) आचारांग चूर्णि मू.पा. टि. पृ. २७८ २. पढमं भंते! महव्वयं के बदले पाठान्तर है-पढम भंते! महव्वए। ३. '३'का अंक अवशिष्ट दो कारणों-कारित और अनुमोदित का सूचक है। जैसे 'नेवऽअण्णं पाणातिवातं
कारवेज्जा, अण्णं पिपाणातिवातं करतंण समणुजाणेजा।' इतना पाठ यहाँ समझना चाहिए। देखें सूत्र ७८०,७८३।
'वयसा' के बदले पाठान्तर है-'वायसा'। ५. 'गरहामि' के बदल पाठान्तर है—'गरिहामि।' ६. (क) आचारांग मूलपाठ सटिप्पण पृ. २७९ (ख) तुलना कीजिए-दशवैकालिक अ. ४ सू. ११