Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 407
________________ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध शिविका-निर्माण ७५४. ततो णं सक्के देविंदे देवराया सणियं २ जाणविमाणं ठवेति। सणियं २ [जाण] विमाणं ठवेत्ता सणियं २ जाणविमाणातो पच्चोतरति, सणियं २ जाणविमाणाओ पच्चोत्तरिता एगंतमवक्कमति। एगंतमवक्कमित्ता महता वेउव्विएणं समुग्घातेणं समोहणति। महता वेउव्विएणं समुग्घातेणं समोहणित्ता एगं महं णाणमणि-कणग-रयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकंतरूवं देवच्छंदयं विउव्वंति। तस्स णं देवच्छंदयस्स बहुमज्झदेसभागे एगं महं सपादपीढं सीहासणं णाणामणि-कणग रयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकंतरूवं विउव्वति, २ [त्ता] जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, २ [त्ता] समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति। समणं भगवं महावीरं तिखुत्तोआयाहिणपयाहिणं करेत्ता, समणं भगवं महावीरं वंदति, णमंसति। वंदित्ता णमंसित्ता समणं भगवं महावीरं गहाय, जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छति। तेणेव उवागच्छित्ता सणियं २ पुरत्थाभिमुहं २ सीहासणे णिसीयावेति। सणियं २ पुरत्थाभिमुहं णिसीयावेत्ता, सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेत्ता सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेत्ता गंध कासाएहि ३ उल्लोलति। सयपागसहस्स पागेहिं तेल्लेहिं उल्लोलेत्ता सुद्धोदएणं मज्जावेति, २ [त्ता] जस्स जंतबलं ५ सयसहस्सेणं तिपडोलतित्तएणं साहिएण सरसीएण गोसीसरत्तचंदणेणं अणुलिंपति, २ [त्ता] ईसिणिसासवातवोझं वरणगर-पट्टणुग्गतं कुसलणरपसंसितं अस्सलालपेलयं छेयायरियकणगखचितंतकम्म हंसलक्खणं पट्टजुयलं णियंसावेति, २[त्ता] हारं अद्धहारं उरत्थं-एगावलिं पालंबसुत्त-पट्टमउड-रयणमालाई आविंधावेति। आविंधावेत्ता गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघातिमेणं मल्लेणं कप्परुक्खमिव समालंकेति। समालंकेत्ता दोच्चं सि महता वेउव्वियसमुग्घातेणं समोहणति, २ [त्ता] एगं महं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणियं विउव्वति, तंजहा—ईहामिय-उसभ-तुरग-पर-मकर१. किसी-किसी प्रति में 'तिक्खुत्तो' शब्द नहीं है। २. 'पुरत्थाभिमुहं' के बदले 'पुरत्थाभिमुहे' पाठान्तर है। ३. 'कासाएहिं' के बदले 'कसाएहिं' पाठ है। ४. 'सुद्धोदएणं मज्जावेति' के बदले 'उल्लोलिंति स सुद्धोदएण' 'उल्लोलिंति २ सुसुद्धोदएणं' पाठान्तर हैं। ५. 'जंतबल सहसहस्सेणं' के बदले जंतपलं सहसहस्सेणं' 'जस्स य मुल्लं सयसाहस्सेणं' पाठान्तर हैं। ६. इसके बदले पाठान्तर हैं- 'साहीएणं गोसीस', 'साहिएण सीतएण गोसीस'...। दूसरे का अर्थ है सिद्ध किये हुये शीतल गोशीर्ष रक्त चन्दन से। ७. 'कुसलणरपसंसितं' के बदले 'कुसलनरपइसंसितं','कसलनरपरिनिम्मियं' ये पाठान्तर मिलते हैं अर्थ हैं- कुशलनरपति द्वारा प्रशंसित, कुशल मनुष्यों द्वारा परिनिर्मित। ८. 'अस्सलालपेलयं ' के बदले पाठान्तर है- 'अस्सलालापेलयं'। ९. 'समालंकेत्ता' के बदले 'समलंकेत्ता' और 'समलंकित्ता' पाठान्तर हैं।

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