Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 339
________________ ३१४ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध याणि वा विज्जलाणि वा खणुयाणि वा कडवाणि १ वा पगत्ताणि वा दरीणि २ वा पदुग्गाणि वा समाणि वा विसमाणि वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि [ थंडिलंसि ] णो उच्चार- पासवणं वोसिरेज्जा । ३ ६५७. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा माणुसरंधणाणि वा महिसकरणाणि वा वसभकरणाणि वा अस्सकरणाणि वा कुक्कुडकरणाणि वा मक्कडकरणाणि ५ वा लावयक रणाणि या वट्टयकरणाणि वा तित्तिरकरणाणि वा कवोतकरणाणि वा कपिंजलकरणाणि वा अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि [ थंडिलंसि ] णो उच्चार- पासवणं वोसिरेज्जा । ६ ६५८. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा वेहाणसट्ठाणेसु वा गद्धपट्ठट्ठाणेसु वातरुपवडणट्टासु वा मेरुपवडणट्ठाणेसु ७ वा विसभक्खणट्ठाणेसु ' वा अगणिफंडय (पक्खंदण? ) ट्ठाणेसु वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि [ थंडिलंसि ] णो उच्चार- पासवणं वोसिरेज्जा । ६५९. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा आरामाणि वा उज्जाणाणि वा वाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि वा पवाणि वा अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि [ थंडिलंसि ] णो उच्चार- पासवणं वोसिरेज्जा । ६५७. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं १० जाणेज्जा ११ अट्टालयाणि १२ वा चरियाणि 'कडवाणि वा पगड्डाणि वा, कडयाणि वा - १. 'कडवाणि वा पगत्ताणि वा' के बदले पाठान्तर हैं। पगडाणि वा ।' अर्थ समान है। २. 'दरीणि' के बदले पाठान्तर हैं— दरिणि; दरियाणि । अर्थ समान है। ३. तुलना कीजिये - • निशीथसूत्र उ० १२ सू०२२ । ४. 'कुक्कुडकरणाणि' के बदले पाठान्तर है - 'कुक्कुरकरणाणि' । अर्थ होता है कुत्तों के लिए बना — आश्रय स्थान ।' ५. किसी किसी प्रति में 'मक्कडकरणाणि' पाठ नहीं है। ६. 'तरुपवडणट्ठाणेसु' के बदले पाठान्तर है— 'तरुपडणट्ठाणेसु' । ७. 'मेरुपवडणट्ठाणेसु' किसी किसी प्रति में नहीं है, किसी प्रति में उसके बदले पाठान्तर है— मरुपवडणट्ठाणेसु । अर्थ समान है। . ८. 'विसभक्खणट्ठाणेसु' के बदले पाठान्तर है - 'विसभक्खयट्ठाणेसु ।' ९. किसी किसी प्रति में 'सभाणि' पाठ नहीं है। १०. तुलना कीजिए – निशीथसूत्र के उ०१५ चूर्णि पृ० ५५६ सू० ६८-७४ से। - ११. निशीथ उ० ३ चूर्णि में व्याख्या का उपसंहार करते हुए कहा है – 'विभासा विस्तारेण कर्तव्या जहा सुत् आयारबित्तिय सुत्तखंधे थंडिलसत्तिकए ।' व्याख्या विस्तृत रूप से करनी चाहिए, जिस प्रकार आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में स्थण्डिलसप्तिका में वर्णन है। १२. 'अट्टालयाणि वा' इत्यादि पाठ विस्तृत रूप में 'जे अहंसि वा अट्ठालगंसि वा पागारंसि वा चरियंसि दारंसि वागोपुरं वा... " महाकुलेसु वा महागिहेसु वा ।' निशीथसूत्र अष्टम उद्देशक में मिलता है। देखें इसकी चूर्णि (संपादन : उपाध्याय अमरमुनि) पृ० ४३१-४३४ । -

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