Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
(४) जो निष्परिग्रही साधुओं के निमित्त बनाया, बनवाया, उधार लिया या संस्कारित परिकर्मित किया गया हो।
(५) जहाँ गृहस्थ कंद, मूल आदि को बाहर-भीतर ले जाता हो। (६) जो चौकी मचान आदि किसी विषम एवं उच्च स्थान पर बना हो। (७) जो सचित्त पृथ्वी, जीवयुक्त काष्ठ आदि पर बना हो। (८) जहाँ गृहस्थ द्वारा कंद, मूल आदि अस्त-व्यस्त फैंके हुए हों। (९) शाली, जौ, उड़द आदि धान्य जहाँ बोया जाता हो।
(१०) जहाँ कूड़े के ढेर हों, भूमि फटी हुई हो, कीचड़ हो, ईख के डंडे, दूंठ, खीले आदि पड़े हों, गहरे बड़े-बड़े गड्ढे आदि विषम स्थान हों।
(११) जहाँ रसोई बनाने के चूल्हे आदि रखे हों तथा जहाँ भैंस, बैल आदि पशु-पक्षी गण का आश्रय स्थान हो।
(१२) जहाँ मृत्यु दण्ड देने के या मृतक के स्थान हों। (१३) जहाँ उपवन, उद्यान, वन, देवालय, सभा, प्रपा आदि स्थान हों। (१४) जहाँ सर्वसाधारण जनता के गमनागमन के मार्ग, द्वार आदि हों। (१५) जहाँ तिराहा, चौराहा आदि हों।
(१६) जहाँ कोयले, राख (क्षार) बनाने या मुर्दे जलाने आदि के स्थान हों, मृतक के स्तूप व चैत्य हों।
(१७) जहाँ नदी तट, तीर्थस्थान हो, जलाशय या सिंचाई की नहर आदि हो। . (१८) जहाँ नई मिट्टी की खान, चारागाह हों। (१९) जहाँ साग-भाजी, मूली आदि के खेत हों। (२०) जहाँ विविध वृक्ष के वन हों। तीन विधानात्मक स्थण्डिल सूत्र इस प्रकार हैं(१) जो स्थण्डिल प्राणी, बीज यावत् मकड़ी के जालों आदि से रहित हों। (२) जो श्रमणादि के उद्देश्य से बनाया गया न हो तथा पुरुषान्तरकृत यावत् आसेवित हो।
(३) एकान्त स्थान में, जहाँ लोगों का आवागमन एवं अवलोकन न हो, जहाँ कोई रोकटोक न हो, द्वीन्द्रियादि जीव-जन्तु यावत् मकड़ी के जाले न हों, ऐसे बगीचे, उपाश्रय आदि में दग्धभूमि आदि पर जीव-जन्तु की विराधना न हो, इस प्रकार से यतनापूर्वक मल-मूत्र का विसर्जन करे।
निषिद्ध स्थण्डिलों में मल-मूत्र विसर्जन से हानियाँ-(१) जीव-जन्तुओं की विराधना होती है, वे दब जाते हैं, कुचल जाते हैं, पीड़ा पाते हैं।
(२) साधु को एषणादि दोष लगता है, जैसे- औद्देशिक, क्रीत, पामित्य, स्थापित आदि। १. आचारांग वृत्ति पत्रांक ४०८, ४०९, ४१० के आधार पर