Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र -द्वितीय श्रुतस्कन्ध
७०३. यदि कोई गृहस्थ मुनि के शरीर पर तेल, घी आदि चुपड़े, मसले या मालिश करे तो साधु न तो उसे मन से ही चाहे, न वचन और काया से कराए।
७०४. यदि कोई गृहस्थ मुनि के शरीर पर लोध, कर्क, चूर्ण या वर्ण का उबटन करे, लेपन करे तो साधु न तो उसे मन से ही चाहे और न वचन और काया से कराए।
७०५. कदाचित् कोई गृहस्थ साधु के शरीर को प्रासुक शीतल जल से या उष्ण जल से प्रक्षालन करे या अच्छी तरह धोए तो साधु न तो उसे मन से चाहे और न वचन और काया से कराए।
७०६. कदाचित् कोई गृहस्थ साधु से शरीर पर किसी प्रकार के विशिष्ट विलेपन का एक बार लेप करे या बार-बार लेप करे तो साधु न तो उसे मन से चाहे और न उसे वचन और काया से कराए।
७०७. यदि कोई गृहस्थ मुनि के शरीर को किसी प्रकार के धूप से धूपित करे या प्रधूपित करे तो साधु न तो उसे मन से चाहे और न वचन और काया से कराए।
[यदि कोई गृहस्थ मुनि के शरीर पर फूंक मारकर स्पर्श करे या रंगे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न वचन और काया से उसे कराए।]
विवेचन—काय-परिकर्मरूप परक्रिया का सर्वथा निषेध–सू. ७०१ से ७०७ तक ७ सूत्रों में गृहस्थ द्वारा विविध काय-परिकर्म रूप परिचर्या लेने का निषेध किया गया है। सारा ही विवेचन पाद-परिकर्मरूप परक्रिया के समान है। गृहस्थ से ऐसी काय-परिकर्म रूप परिचर्या कराने में पूर्ववत् दोषों की सम्भावनाएँ हैं। व्रण-परिकर्म रूप परक्रिया-निषेध
७०८. से से परो कायंसि वणं आमजेज वा, पमजेज वा, णो तं सातिए णो तं नियमे। ७०९.से से परो कार्यसि वणं संबाहेज वा पलिमद्देज वा,णोतं सातिए णोतं नियमे।
७१०.से से परो कायंसि वणं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा मक्खेज वा भिलिंगेज' वा, णो तं सातिए णो तं नियमे।
७११. से से परो कायंसि वणं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोढेज वा उव्वलेज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे।
७१२.से से परो कायंसि वणं सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोवेज वा, णो तं सातिए णो तं नियमे।
१. 'भिलिंगेज' के बदले 'भिलंगेज्ज' पाठान्तर है। २. इसके बदले 'लोदेण' पाठान्तर है। ३. 'उल्लोढेज' के बदले 'उल्लेटेज' पाठान्तर है। ४. 'पधावेज' के बदले पाठान्तर हैं-पहोएज, 'पधोएज।'