Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
एकादश अध्ययन : सूत्र ६८७-६८८
६८७. से भिक्खू वा २ णो इहलोइएहिं सद्देहिं णो परलोइएहिं सद्देहि,णो सुतेहिं सद्देहिं नो असुतेहिं सद्देहिं, णो १ दिटेहिं सद्देहिं नो अदितुहिं सद्देहिं, नो २ इटेहिं सद्देहिं, ना कंतेहिं सद्देहिं सज्जेजा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्झेजा, णो मुजेजा, णो अज्झोववज्जेजा। ३ ।
६८८. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जएजासि त्ति बेमि॥
६८७. साधु या साध्वी इहलौकिक एवं पारलौकिक शब्दों में, श्रुत-(सुने हुए) या अश्रुत(बिना सुने) शब्दों में, देखे हुए या बिना देखे हुए शब्दों में, इष्ट और कान्त शब्दों में न तो आसक्त हो, न रक्त (रागभाव से लिप्त) हो, न गृद्ध हो, न मोहित हो और न ही मूर्च्छित या अत्यासक्त हो।
६८८. यही (शब्द श्रवण-विवेक ही) उस साधु या साध्वी का आचार-सर्वस्व है, जिसमें सभी अर्थों-प्रयोजनों सहित समित होकर सदा वह प्रयत्नशील रहे।
विवेचन - शब्दश्रवण में आसक्ति आदि का निषेध - प्रस्तुतसूत्र में इहलौकिक और पारलौकिक सभी प्रकार के इष्ट आदि (पर्वोक्त) शब्दों के श्रवण में आसक्ति. रागभाव. गद्धि मोह और मूर्छा का निषेध किया गया है। इसके निषेध के पीछे मुख्यतया ये कारण हो सकते हैं
- (१) शब्दों में आसक्ति से मृग या सर्प की भाँति जीवन-विनाश सम्भव है, (२) इष्ट शब्दवियोग और अनिष्ट शब्द-संयोग से मन में तीव्र पीड़ा होती है। (३) आसक्ति से अतुष्टि दोष, दुःख प्राप्ति, हिंसादि दोष उत्पन्न होते हैं। ५ ____ दिट्ठ आदि पदों के अर्थ दिट्ठ-पहले प्रत्यक्ष देखे–स्पर्श किये हुए शब्द, अदिट्ठजो शब्द प्रत्यक्ष न हो, जैसे - देवादि का शब्द। यद्यपि 'सेजजा' (आसक्त हो) आदि पद एकार्थक लगते हैं, किन्तु गहराई से सोचने पर इनका पृथक् अर्थ प्रतीत होता है जैसे आसेवना भाव आसक्ति है, मन में प्रीति होना रक्तता/अनुराग है, दोष जान लेने (उपलब्ध होने) पर इहलोइयंमनुष्यादिकृत, पारलोइयं- जैसे - हय, गज आदि। ६
॥एकादश अध्ययन, चतुर्थ सप्तिका सम्पूर्ण॥ १. किसी-किसी प्रति में नो दिढेहिं सद्देहिं णो अदिटेहिं सद्देहिं पाठ नहीं है। २. किसी-किसी प्रति में नो इट्रेहिं सद्देहिं नो कंतेहिं सहेहिं पाठ नहीं है। ३. अज्झोववजेज्जा के बदले पाठान्तर है -अजोवजेजा। ४. आचारांग वृत्ति पत्रांक ४१३
उत्तराध्ययन अ० ३२ गा० ३७, ३८, ३९ (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ४१३ (ख) आचारांग चूर्णि मू०पा०टि. पृ० २४८ (ग) निशीथचूर्णि उ० १२ पृ० ३५० में 'सज्जणादी पद-एगट्ठिया, अहवा आसेवणभावे सज्जणता, मणसा पीतिगमणं रज्जणता, सदोसुवलेद्धे वि अविरमोगेधी, अगम्ममणासेवणे अझुववातो।' (घ) तुलना कीजिए-जे भिक्खू इहलोइएसु ..परलोइएसु ... दिडेसु... सज्जई वा रज्जई वा गिज्झइ वा अज्झोववज्जइ वा। -निशीथ उ०.१२ पृ० ३५०
د ن