Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
३४४
आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
तेरसमं अज्झयणं 'परकिरिया' सत्तिक्कओ
पर-क्रियासप्तक : त्रयोदश अध्ययन : षष्ठ सप्तिका पर-क्रिया-स्वरूप
६९०. परकिरियं अज्झत्थियं संसेइयं णो तं सातिए णो तं णियमे।
६९०. पर अर्थात् गृहस्थ के द्वारा आध्यात्मिकी अर्थात् मुनि के शरीर पर की जाने वाली कायव्यापाररूपी क्रिया (सांश्लेषिणी) कर्मबन्धन जननी है, (अत:) मुनि उसे मन से भी न चाहे, न उसके लिए वचन से कहे, न ही काया से उसे कराए।
विवेचन–परक्रिया और उसका परिणाम प्रस्तुत सूत्र में परक्रिया क्या है, वह क्यों निषिद्ध है? वह आचरणीय क्यों नहीं है? इसका निर्देश किया गया है। चूर्णिकार एवं वृत्तिकार के अनुसार— पर अर्थात् गृहस्थ के द्वारा की जाने वाली क्रिया- चेष्टा, व्यापार या कर्म, परक्रिया है, वह परक्रिया (पर द्वारा की जाने वाली क्रिया) तभी है, जब वह आध्यात्मिकी (अपने आप पर –साधु के शरीर पर की जा रही हो), ऐसी परक्रिया, जो अपने आप पर होती हो, वह कर्मसंश्लेषिकी कर्मबन्ध का कारण तब होती है, जब दूसरे (गृहस्थ) द्वारा की जाते समय मन से उसमें स्वाद या रुचि ले, मन से चाहे या कहकर करा ले या कायिक संकेत द्वारा करावे। अतः साधु इसे न तो मन से चाहे, न वचन और काया से कराए।
इस सूत्र में तीन बातें फलित होती हैं- १. परक्रिया की परिभाषा, २. साधु के लिए उससे हानि और ३. मन-वचन-काया से उसे अपने आप पर कराने का निषेध। २
अज्झत्थियं-आदि पदों की व्याख्या—अज्झत्थियं— आत्मा— अपने (मुनि के) शरीर पर की जाने वाली। संसेइयं-कर्म-संश्लेषकारिणी। णो सातिए–स्वादारुचि न ले, मन से न चाहे । णो णियमे-वचन-काया से प्रेरणा न करे, अर्थात् - न कराए। ३ । पाद परिकर्म-परक्रिया निषेध
६९१. से से परो पादाइं आमजेज वा पमजेज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे। ६९२. से से परो पादाइं संबाधेज वा पलिमद्देज वा,[णो तं सातिए णो तं णियमे]।
६९३. से से परो पादाई फुमेज वा रएज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे। १. परकिरिया परेण कीरमाणं कम्मं भवति-आचा० चूर्णि २. (क) आचारांग वृत्ति मू० पा० टि० पृष्ठ २५० (ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक ४१६ ३. आचारांग वृत्ति पत्रांक ४१६ ४. इसके बदले 'से सियाई परो' 'से सितो परो'"से सिया परो' पाठान्तर हैं। अर्थ समान हैं।