Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
शब्द-सप्तक : एकादश अध्ययन
प्राथमिक
- आचारांग सूत्र (द्वि० श्रुत०) के ग्यारहवें अध्ययन का नाम 'शब्द-सप्तक' है। . कर्णेन्द्रिय का लाभ शब्द श्रवण के लिए है। भिक्षु अपनी संयम साधना को- ज्ञान-दर्शन
चारित्र को तेजस्वी एवं उन्नत बनाने हेतु कानों से शास्त्र-श्रवण करे, गुरुदेव के प्रशस्त हितशिक्षा पूर्ण वचन सुने, दीन-दुःखी व्यक्तियों की पुकार सुने, किसी के द्वारा भी कर्तव्य प्रेरणा से कहे हुए वचन सुने, वीतराग प्रभु के, मुनिवरों के प्रशस्त स्तुतिपरक शब्द, स्तोत्र एवं भक्तिकाव्य सुने, अहिंसादि लक्षणप्रधान गुण वर्णन सुने, यह तो अभीष्ट शब्द-श्रवण है। संसार में अनेक प्रकार के शब्द हैं, कर्णप्रिय और कर्णकटु भी। परन्तु अपनी प्रशंसा और कीर्ति के शब्द सुनकर हर्ष से उछल पड़े और और निन्दा, गाली आदि के शब्द सुन रोष से उबल पड़े; इसी प्रकार वाद्य, संगीत आदि के कर्णप्रिय स्वर सुनकर आसक्ति या मोह पैदा हो और कर्कश, कर्णकटु और कठोर शब्द सुन कर द्वेष, घृणा या अरुचि पैदा हो, यह अभीष्ट
नहीं है। O कोई भी प्रिय या अप्रिय शब्द अनायास कानों में पड़ जाए तो साधु उसे सुन भर ले किन्तु
उसके साथ मन को न जोड़े। न ही कर्णप्रिय मधुर लगने वाले शब्दों को सुनने की मन में उत्कण्ठा करे। वह समभाव में रहे। इस अध्ययन में कर्ण-सुखकर मधुर शब्द सुनने की इच्छा से गमन करने, प्रेरणा या उत्कण्ठा का निषेध किया गया है। चूँकि राग और द्वेष दोनों ही कर्मबन्ध के कारण हैं, किन्तु राग का त्याग करना बहुत कठिन होने से राग-त्याग पर जोर दिया है। शब्द-सप्तक अध्ययन में किसी भी मनोज्ञ दृष्ट, प्रिय, कर्णसुखकर शब्द के प्रति मन में १. इच्छा, २. लालसा, ३. आसक्ति, ४. राग, ५. गृद्धि, ६. मोह और ७. मूर्छा; इन सातों से दूर रहने का निर्देश होने से (शब्द-सप्तक) नाम सार्थक है।३
-दसवै अ० गा० २६
१. आचारांग नियुक्ति गा० ३२३, आचारांग वृत्ति पत्रांक ४११ २. (क) कण्णसोक्खेहिं सद्देहिं पेमं नाभिनिवेसए।
दारुणं कसं फासं कायेण अहियासये॥ (ख) उत्तराध्ययन सूत्र अ०३२, गा०३० से ४७ तक .. ३. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ४४१
(ख) जैन साहित्य का बृहत् इतिहास (अंगों का अंतरंग परिचय) पृ० ११२