Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 357
________________ (३३२ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध ६७६. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाई सद्दाइं सुणेति, तंजहा- आरामाणि वा उज्जाणाणि वा वणाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि वा पवाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराई सदाइंणो अभिसंधारेजा गमणाए। ६७७. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं सद्दाइं सुणेति, तंजहा- अट्टाणि वा अट्टालयाणि वा चरियाणि वा दाराणि वा गोपुराणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराई सद्दाइं णो अभिसंधारेजा गमणाए। ६७८. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं सद्दाइं सुणेति, तंजहा–तियाणि वा चउक्काणि वा चच्चराणि वा चउमुहाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगारांइं सद्दाइंणो अभिसंधारेजा गमणाए। ६७९. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं सद्दाइं सुणेति, तंजहा- महिसकरणट्ठाणाणि वा वसभरकराणाणि वा अस्सकरणट्ठाणाणि वा हत्थिकरणट्ठाणाणि वा जाव कविजल करणट्ठाणाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराइं सदाइं नो अभिसंधारेजा गमणाए। ६७३. वह साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द श्रवण करते हैं, जैसे कि - खेत की क्यारियों में तथा खाइयों में होने वाले शब्द यावत् सरोवरों में, समुद्रों में, सरोवर की पंक्तियों या सरोवर के बाद सरोवर की पंक्तियों के शब्द, अन्य इसी प्रकार के विविध शब्द, किन्तु उन्हें कानों से श्रवण करने के लिए जाने के लिये मन में संकल्प न करे। ६७४. साधु या साध्वी कतिपय शब्दों को सुनते हैं, जैसे कि नदी तटीय जलबहुल प्रदेशों, (कच्छों) में , भूमिगृहों या प्रच्छन्न स्थानों में, वृक्षों में, सघन एवं गहन प्रदेशों में, वनों में, वन के दुर्गम प्रदेशों में, पर्वतों पर या पर्वतीय दुर्गों में तथा इसी प्रकार के अन्य प्रदेशों में, किन्तु उन शब्दों को कानों से श्रवण करने के उद्देश्य से गमन करने का संकल्प न करे। ६७५. साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द श्रवण करते हैं , जैसे- गंवों में, नगरों में, निगमों में, राजधानी में, आश्रम, पत्तन और सन्निवेशों में या अन्य इसी प्रकार के नाना रूपों में होने वाले शब्द, किन्तु साधु-साध्वी उन्हें सुनने की लालसा से न जाए। ६७६. साधु या साध्वी के कानों में कई प्रकार के शब्द पड़ते हैं, जैसे कि - आरामगारों में, उद्यानों में, वनों में, वनखण्डों में, देवकुलों में, सभाओं में, प्याऊओं में, या अन्य इसी प्रकार के विविध स्थानों में, किन्तु इन कर्णप्रिय शब्दों को सुनने की उत्सुकत्ता से जाने का संकल्प न करे। ६७७. साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि-अटारियों में, प्राकार से सम्बद्ध अट्टालयों में, नगर के मध्य में स्थित राजमार्गों में; द्वारों में या नगर-द्वारों तथा इसी प्रकार के अन्य १. आसकरणं का अर्थ निशीथचूर्णि में किया गया है-आससिक्खावणं आसकरणं एवं सेसाणि वि। अश्वकरण कहते हैं-अश्वशिक्षा देने को। इसी प्रकार शेष करणों से सम्बन्ध जान लें। यहाँ जाव शब्द से हत्थिकरणट्ठाणाणि से कविंजलकरणट्ठाणाणि तक का पाठ सू० ६५७ के अनुसार

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