Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दसमं अज्झयणं 'उच्चार-पासवणं' सत्तिकओ
उच्चार-प्रस्रवण सप्तक : दशम अध्ययन : तृतीय सप्तिका
उच्चार-प्रस्त्रवण-विवेक
६४५. से भिक्खू वा २ उच्चार-पासवणकिरियाए उब्बाहि जमाणे १ सयस्स पादपुंछणस्स असतीए ततो पच्छा साहम्मियं जाएज्जा।
६४५. साधु या साध्वी को मल-मूत्र की प्रबल बाधा होने पर अपने पादपुञ्छनक के अभाव में साधर्मिक साधु से उसकी याचना करे [और मल-मूत्र विसर्जन क्रिया से निवृत्त हो।]
विवेचन - मल-मूत्र के आदेश को रोकने का निषेध–प्रस्तुत सूत्र में मल-मूत्र की हाजत हो जाने पर उसे रोकने के निषेध का संकेत किया है। हाजत होते ही वह तुरन्त अपना मांत्रक-पात्र ले, यदि मात्रक न हो तो अपना पात्रप्रोञ्छन या पादपोंछन वस्त्र लेकर उस क्रिया से निवृत्त हो, यदि वह भी न हो, खो गया हो, कहीं भूल गया हो, नष्ट हो गया हो तो यथाशीघ्र साधर्मिक साधु से माँगे और उक्त क्रिया से शीघ्र निवृत्त होवे । वृत्तिकार इस सूत्र का आशय स्पष्ट करते हैंमल-मूत्र के आवेग को रोकना नहीं चाहिए। मल के आवेग को रोकने से व्यक्ति जीवन से हाथ धो बैठता है, और मूत्र बाधा रोकने से चक्षुपीड़ा हो जाती है। २
उब्बाहिजमाणे आदि पदों का अर्थ- उब्बाहिजमाणे- प्रबल बाधा हो जाने पर। सयस्स- अपने । असतीए - न होने पर, अविद्यमानता में, अभाव में। ३ १. सू० ६४५ में उच्चार-प्रस्रवण की बाधा प्रबल हो जाने पर जो विसर्जन विधि बताई है, उसका स्पष्टीकरण
चूर्णिकार करते हैं--(जोर की बाधा होने पर) सअण्ड हो या अल्पाण्ड स्थण्डिल, वह झटपट वहाँ पहुँच जाए, और अपना पादप्रोञ्छन, रजोहरण या जीर्ण वस्त्रखण्ड जो शरीर पर हो, अगर अपना न हो, नष्ट हो गया हो, खो गया हो या कहीं भूल गया हो, या गीला हो तो दूसरे साधु से माँग कर मलादि विसर्जन करे, मलादि त्याग करे, जल लेकर मलद्वार को शुद्ध और निर्लेप कर ले।
-- आचा० चूर्णि मू० पा० टि० पृ० २३१ (क) देखिये दशवै० अ० ५, उ० १ गा० ११ की जिनदासचूर्णि पृ० १७५ पर - ... मुत्तनिरोधे चक्खुबाधाओ भवति, वच्चनिरोहे य जीवियमवि रंधेजा। तम्हा वच्चमुत्तनिरोधो न कायव्यो।' (ख) आचारांग चूर्णि मू० पा० टि० पृ० २३१ में बताया है - 'खड्डागसन्निरुद्धे पवडणादि दोसा' - शंकाओं को रोकने से प्रपतनादि दोष-गिर जाने आदि का खतरा -होते हैं। (ग) आचारांग वृत्ति पत्रांक ४०९
(घ) देखें पृष्ठ ३१० (प्राथमिक का टिप्पण १) . ३. आचारांग वृत्ति पत्रांक ४०९