Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम अध्ययन: सूत्र ६४३-६४४
वास्तव में निषीधिका की अन्वेषणा तभी की जाती है, जब आवासस्थान संकीर्ण, छोटा, खराब या स्वाध्याय - ध्यान के योग्य न हो ।
प्रस्तुत में उदकप्रसूत-कंदादि तक २ + ११ = १३ विकल्प होते हैं, शय्यैषणा - अध्ययन के अनुसार आगे और भी विकल्प हो सकते हैं । १
निषधिका में अकरणीय कार्य
६४३.
ते तत्थ दुवग्गा वा तिवग्गा वा चउवग्गा २ वा पंचवग्गा वा अभिसंधारेंति सीहियं गमणा ते णो अण्णमण्णस्स कायं आलिंगेज्ज वा, विलिंगेज्ज वा, चुंबेज्ज वा, दंतेहिं वा नहेहिं वा अच्छिदेज्ज वा ।
६४३. यदि स्वाध्यायभूमि में दो-दो, तीन-तीन, चार-चार या पांच-पांच के समूह में एकत्रित होकर साधु जाना चाहते हों तो वे वहाँ जाकर एक दूसरे के शरीर का परम्पर आलिंगन न करें, न ही विविध प्रकार से एक दूसरे से चिपटें, न वे परस्पर चुम्बन करें, न ही दांतों और नखों से एक दूसरे का छेदन करें।
विवेचन — प्रस्तुत सूत्र में निषीधिका में न करने योग्य परस्पर आलिंगन, चुम्बन आदि कामविकारोत्पादक मोहवर्द्धक प्रवृत्तियों का निषेध किया है। ये निषिद्ध प्रवृत्तियाँ और भी अनेक प्रकार की हो सकती हैं, जैसे निषीधिका में कलह, कोलाहल तथा पचन- पाचनादि अन्य सावद्य प्रवृत्तियाँ करना इत्यादि ।
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६४४. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वट्ठेहिं सहिए समिए सदा जज्जा, सेयमिणं मण्णेज्जासि त्ति बेमि ।
६४४. यही (निषीधिका के उपयोग का विवेक ही) उस भिक्षु या भिक्षुणी के साधु-जीवन का आचारे सर्वस्व जिसके लिए वह सभी प्रयोजनों और ज्ञानादि आचारों से तथा समितियों से युक्त होकर सदा प्रयत्नशील रहे और इसी को अपने लिए श्रेयस्कर माने ।
ऐसा मैं कहता हूँ ।
॥ नवम अध्ययन, द्वितीय सप्तिका समाप्त ॥
१.
२. इनके बदले पाठान्तर है
आचारांग वृत्ति, पत्रांक ३६०
३०९
. 'चउग्गा वा पंचमा वा' ।
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३. सर्वार्थे का भावार्थ वृत्तिकार के शब्दों में— 'अशेषप्रयोजनैरामुष्मिकैः सहितः समन्वितः ।'
समस्त प्रयोजनों से युक्त ।
- पारलौकिक
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