Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
_[२] इसके पश्चात् दूसरी प्रतिमा यों है— वह साधु या साध्वी पात्रों को देखकर उनकी याचना करे, जैसे कि गृहपति यावत् कर्मचारिणी से। वह पात्र देखकर पहले ही उसे कहे- आयुष्मन् गृहस्थ! या आयुष्मती बहन ! क्या मुझे इनमें से एक पात्र दोगी/ दोगे? जैसे कि तुम्बा, काष्ठ या मिट्टी का पात्र । इस प्रकार के पात्र की स्वयं याचना करे, या गृहस्थ स्वयं दे तो उसे प्रासुक एवं एषणीय जानकर प्राप्त होने पर ग्रहण करे। यह दूसरी प्रतिमा है।
[३] इसके अनन्तर तीसरी प्रतिमा इस प्रकार है- वह साधु या साध्वी यदि ऐसा पात्र जाने के वह गृहस्थ के द्वारा उपभुक्त है अथवा उसमें भोजन किया जा रहा है, इस प्रकार के पात्र की पूर्ववत स्वयं याचना करे अथवा वह गृहस्थ स्वयं दे दे तो उसे प्रासक एवं एषणीय जानकर मिलने पर ग्रहण करे। यह तीसरी प्रतिमा है।
[४] इसके पश्चात् चौथी प्रतिमा यह है - वह साधु या साध्वी (गृहस्थ के यहाँ से ) किस उज्झितधार्मिक (फेंक देने योग्य) पात्र की याचना करे, जिसे अन्य बहुत-से शाक्यभिक्षु, ब्राह्मण यावत भिखारी तक भी नहीं चाहते, उस प्रकार के पात्र की पूर्ववत् स्वयं याचना करे, अथवा वह गृहस्थ स्वयं दे तो प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर ग्रहण करे। यह चौथी प्रतिमा है।
५९५. इन (पूर्वोक्त) चार प्रतिमाओं (विशिष्ट अभिग्रहों) में से किसी एक प्रतिमा का ग्रहण... जैसे पिण्डैषणा-अध्ययन में वर्णन है, उसी प्रकार शेष वर्णन जाने।
विवेचन - पात्रैषणा के सम्बन्ध में चार प्रतिमाएं - प्रस्तुत सूत्रद्वय में पात्रैषणा की चार प्रतिमाओं का वर्णन, पिण्डैषणा-अध्ययन की तरह है। पात्र के प्रसंग को लेकर कहीं-कहीं वर्णन में थोड़ा अन्तर है, बाकी चारों प्रतिमाओं का नाम एवं विधि उसी तरह है- १. उद्दिष्टा, २. प्रेक्षा ३. परिभुक्तपूर्वा और ४. उज्झित-धार्मिका। निर्ग्रन्थ साधु इन चार प्रतिमाओं में से किसी भी एक, दो या तीन प्रतिमाओं को ग्रहण करके तदनुसार दृढ रहकर उसका पालन कर सकता है। परन्त वह चारों में से किसी एक प्रतिमा के धारक दूसरे मुनि को अपने से निकृष्ट और स्वयं को उत्कृष्ट न माने, अपितु प्रतिमाओं के स्वीकार करने वाले सभी साधुओं को जिनाज्ञा में उपस्थित एवं परस्पर समाधिकारक एवं सहायक माने, यही संकेत सूत्र ५९५ में जहा पिंडेसणाए पदों से दिया गया है।
'संगइयं' आदि पदों की व्याख्या- चूर्णिकार के मतानुसार यों है— संगइयं-दो या तीन पात्रों का गृहस्थ बारी-बारी से उपयोग करता है, साधु के द्वारा याचना करने पर उनमें से एक देता है तो ऐसे (स्वांगिक) पात्र के लेने में प्रवचन-दोष नहीं है। वेजयंतियं- जिस पात्र में भोजन करके राजा आदि के उत्सव या मृत्युकृत्य पर खाद्य को भूनकर या वैसे ही रखकर छोड़
१. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३९९ के आधार पर २. (ख) आचारांग मूल (आचारचूला, मुनि नथमलजी) पृ. १७६, १७७